गोपालगंज: भगवान भरोसे चल रही है बरौली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था, मरीजों को होती है परेशानी
गोपालगंज: बरौली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का उस वक्त फिर से पोल खुल गया जब शनिवर को तिरंगा यात्रा समापन के क्रम में ही नगर परिषद में तैनाथ सीआरी शबनम खातून अचानक अचेत हो गई। उसे इलाज के लिये नगर परिषद के कर्मियों ने बरौली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में लाया। जहाँ उसे बेड पर ले जाने के लिये कोई सुविधा नही दिखी। ना स्ट्रेचर लाया गया ना ही कोई कर्मी आया। नगर परिषद के कर्मी व साथ मे आई जीविका समूह की महिलाओ ने उसे उठाकर अस्पताल की बेड पर रखा, जहाँ उनका इलाज किया गया।
अस्पताल की व्यवस्था ये है कि यहां टेटभेट की भी शुई मरीजो के परिजनों को बाहर से ही खरीद कर लानी पड़ती है। बैंडेज और रुई भी गायब रहता है। यहां मौजूद स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा बैंडेज रुई रहने पर मरीजो का इलाज किया जाता है। नही रहने पर बाहर से खरीदने की सलाह दी जाती है। ऐसे में हड़बड़ाए हुए परिजन सवाल करने के बजाय सीधे बाहर किसी दुकान से बताये अनुसार सभी बैंडेज, रुई और दवा खरीद कर लाता है। तब तक इस अस्पताल में मरीज तड़पते रहता है। यही नही अस्पताल व्यवस्था के नाम पर भगवान भरोसे ही मरीजों का इलाज किया जाता है। या यूं कह ले कि इलाज के नाम पर सिर्फ रेफर कर दिया जाता है।
बता दे कि सदर अस्पताल के बाद जिले का पहला पीएचसी अस्पताल है जहां फ़ोटो खिंचने और वीडियो बनाने पर डॉक्टर को परेशानी होती है। वही जब पत्रकार पीएचसी अस्पताल की खामियों को अपने कैमरे में कैद करते है तब डॉक्टर के द्वारा कहा गया कि इस अस्पताल में परमिशन लेकर ही वीडियो बनानी है। इस मसले पर चर्चा करने पर वो खुद ही आग बबूला हो गये। यहां तक कह डाला कि बिना अनुमती के वीडियो नही बनानी है। कई तरह के कायदा व कानून की भी बाते उनके द्वारा बताई गई। ऐसा प्रतीत होने लगा कि डॉक्टर कम वकील ज्यादा है।
दरअसल बात ये थे कि बिना स्ट्रेचर के ही किसी भी मरीज को टांग कर अस्पताल के अंदर लाया जाता है। एम्बुलेंस है लेकिन उसमें न ऐसी है ना ही अन्य सुविधा। हाल में एक एम्बुलेंस और नई आई हुई है। वही एम्बुलेंस के अभाव में निजी गाड़ियों से डिलीवरी करानी हो या कोई अन्य समस्या हो निजी गाड़ी या भाड़े की गाड़ी से ही लोगो को आना पड़ता है। बेड है लेकिन उसपर कभी चादर नसीब नही हुआ। जबकि प्रत्येक दिन बेड से चादर बलनी होती है। यहां दिखाने आये मरीजो को दवा देने के नाम पर पुर्जा ही दे दी जाती है। कोई एक दवा के साथ, डिलीवरी कराने के नाम पर प्राइवेट अस्पताल का हवाला देकर लोगों से पैसे की उगाही की जाती है। ये कहा जाता है कि प्राइवेट अस्पताल में गये होते तो अब तक दस बीस हजार रुपये दे चुके होते। यहां पर भी मेहनत लगता है। रात दिन जगते है सहित तरह तरह के बहानेबाजी कर सिर्फ लोगों से पैसे की उगाही की जाती है।
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