गोपालगंज: लॉक डाउन के दौरान दिहाड़ी मजदूरी की बढ़ी परेशानियां, दो जून की रोटी भी नसीब नही
गोपालगंज में कोरोना पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़कर जहा 3 हो गयी है। वही जिले में बनाये गए क्वारंटाइन सेण्टर में 50 लोगो को सर्विलांस में रखा गया है। ऐसे हालत में पुरे देश की तरह गोपालगंज में लॉक डाउन है। जिसकी वजह से वैसे लोगो की परेशानी बढ़ गयी है। जिन्हें दिहाड़ी मजदूरी के बाद दो जून की रोटी नसीब होती है।
सदर प्रखंड के मकुनिया गाँव की नहर पर रहने वाले 90 वर्षीय कुदन साह की बूढी और बेजान हड्डियो में वह जान नहीं की वे अब अपनी बूढी पत्नी और खुद का पेट पाल सके। कुदन साह कुचायकोट प्रखंड के धुपसागर गाँव के बाढ़ विस्थापित है। जिसकी वर्षो पूर्व 2 बीघे जमीन गंडक की भेट चढ़ गयी। इनका पूरा परिवार भी गंडक के कहर से समय से पूर्व ख़त्म हो गया। गंडक के कटाव से जब कुदन साह का परिवार और जमीन सब कुछ खत्म हो गया। तो वे थावे प्रखंड के मकुनिया गाँव के समीप नहर पर एक झोपडी बनाकर रहते है। दिहाड़ी का काम करके दो जून की रोटी से पेट भरने वाले कुदन साह के पास अब कोई काम नहीं है। तीन दिनों से इनके घर चुल्हा नहीं जला है। मकुनिया गाँव के किसी रहमदिल ने कुछ रुखी सुखी पुडिया दे दी। जिससे उनका आज पेट भरने का जुगाड़ हो गया है। कुदन साह और उनकी 85 वर्षीय बुजुर्ग पत्नी गुलाबी देवी घर के दो ही सदस्य है। जो झोपडी में रहकर ऐसे ही पड़े हुए है। जीविका के नाम पर एक बकरी जरुर है। लेकिन इनके पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड, राशन कार्ड नहीं है। समाचार संकलन के दौरान आवाज़ टाइम्स की टीम की नजर जब यहाँ पड़ी तब टीम ने इन्हें पास में रखे कुछ बिस्कुट के पैकेट और घर में खाने का सामान खरीदने के लिए पैसे जरुर उपलब्ध कराये लेकिन वह भी सिर्फ चंद दिनों में ख़त्म हो जायेंगे।
मकुनिया गांव के रहने वाले किसान झूलन साह के मुताबिक यह परिवार करीब 15 से 20 साल से यहाँ रहता है। लॉक डाउन के बाद इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। पास में एक होटल था। उसमे से कुछ खाने के लिए मिल जाता था। लेकिन अब वह भी कई दिनों से बंद है। जिसकी वजह से इन्हें कई बार भूखे सोना पड़ता है। गाँव के लोग कुछ खाने को दे देता है। तब ये कुछ खा लेते है नहीं तो ऐसे ही उपवास रहना पड़ता है।
कुदन साह की पत्नी गुलाबी देवी के मुताबिक वे काला मटिहनिया पंचायत के धुपसागर के रहने वाले है। गंडक के कटाव से उनका सबकुछ ख़त्म हो गया। जब सब कुछ नार्मल था। तब कुछ खाने के लिये मिल जाता था। लेकिन अब बंदी के बाद कुछ खाने को नही मिल पाता है।
गुलाबी देवी बताती है उनके पास खाना बनाने के लिए सब कुछ है। लेकिन उनका चूल्हा आज चुल पड़ा हुआ है। यानी आग बुझी हुई है। खाने का कोई सामान ही नहीं है तो वे बनाएगी क्या। किसी ने पुड़ी दी है। आज वही इनका भोजन है।
बहरहाल अब जरूरत है लोगो को सामने आने की ताकि वे अपने आसपास के ऐसे लोगो की पहचान कर उनकी मदद करे।