गोपालगंज: किसी व्यक्ति की सहमति के बगैर गलत तरीके से कुछ भी छूना यौन उत्पीड़न – डॉ. ममता
गोपालगंज: स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा यौन उत्पीड़न से पीड़ितों के परीक्षण का मुख्य उद्देश्य इस तरह के मामलों में खास तौर पर महिलाओं एवं युवतियों के साथ किसी अन्य के द्वारा यौन उत्पीड़न किये जाने के बाद पीड़िता को चिकित्सीय सलाह एवं उचित मार्गदर्शन को लेकर सदर अस्पताल के एनआरसी भवन में एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन गया। इस प्रशिक्षण के आयोजन में ज़िले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों से एक-एक चिकित्सा पदाधिकारियो वहीं सदर अस्पताल से 12 तथा हथुआ अनुमंडल अस्पताल से 2 चिकित्सकों को शामिल किया गया था। जिन्हें मेडिको लीगल से संबंधित मामलों के निष्पादन करने का अनुभव प्राप्त है। मास्टर ट्रेनर के रूप में महिला रोग विशेषज्ञ डॉ ममता और डॉ. संजीव कुमार के द्वारा उपस्थित सभी चिकित्सा पदाधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है।
डॉ. ममता ने कहा कि किसी भी प्रकार की यौन क्रिया या यौन क्रिया करने का प्रयास, अवांछित यौन टिप्पणियां या छींटाकशी, किसी तरह से दिया गया प्रस्ताव, अवैध तरीक़े से किया गया प्रयास, घर या दफ्तर सहित लेकिन उस तक ही सीमित नहीं, ऐसी किसी व्यवस्था में पीड़ित से किसी भी तरह से संबंध होने के बावजूद किसी व्यक्ति द्वारा जबरदस्ती नुकसान पहुंचाने की धमकी देकर या शारीरिक बल प्रयोग द्वारा किसी व्यक्ति की यौनिकता के खिलाफ किया गया कार्य को यौन उत्पीड़न के रूप में माना गया है। जो कि एक तरह से यौन हिंसा का ही दूसरा रूप है। यह एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग बलात्कार के साथ किया जाता है। यौन उत्पीड़न में किसी व्यक्ति की सहमति के बिना गलत तरीके से उसके शरीर को छूने से लेकर जबरदस्ती संभोग तक कुछ भी शामिल किया जा सकता है।
सदर अस्पताल के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए है कि रेप जैसे मामलों को लेकर सरकार के साथ ही स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से तत्पर है कि यौन शोषण की शिकार महिलाओं को उचित सलाह एवं मार्गदर्शन दिया जाए। ताकि वह अपना अधिकार खुद ले सके। यह दिशा-निर्देश उन सरकारी एवं निजी चिकित्सकों के लिए बनाई गई है जो यौन उत्पीड़न मामलों में चिकित्सीय परीक्षण के लिए बुलाये जाते हैं। नये रेप कानून में यौन से संबंधित पीड़िता का चिकित्सीय सलाह या उपचार किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान द्वारा मना नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह दंडनीय अपराध घोषित है। जिसमें कैद, आर्थिक दण्ड या दोनों का प्रावधान है। यह दिशा-निर्देश संवेदनशील एवं मानवीय प्रयास है जो उत्पीड़ितों को उचित चिकित्सा था दस्तावेजीकरण करने में चिकित्सकों द्वारा कार्य निष्पादन में काफ़ी मददगार साबित होगा।
डीपीसी जयंत कुमार चौहान ने बताया कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-39 के अनुसार इस मामले में चिकित्सक का विधिक कर्तव्य होता है कि प्राथमिक चिकित्सा मुहैया कराने के बाद तत्काल वह अपने निकटतम पुलिस स्टेशन को इसकी सूचना दे, ताकि पुलिस त्वरित कार्यवाही शुरू कर अधिक से अधिक साक्ष्य एकत्र कर सके। जिसके तहत मेडिको-लीगल को चोट या बीमारी से संबंधित या इसके अंतर्गत वाहन दुर्घटनाओं, दहन, संदिग्ध हत्या/हत्या, यौन उत्पीड़न तथा आपराधिक गर्भपात आदि कारणों से लगने वाली चोट या संबंधित रोगों को शामिल किया गया है। वर्तमान समय में छोटे-छोटे मासूम बच्चों में मोबाइल फ़ोन के माध्यम से पोर्नोग्राफी देखने की परंपरा शुरू हो गई है। जिस कारण उनमें सेक्स की भावना जागृत हो जाती है। ऐसे में वो किसी भी अपराध खासकर यौन अपराध को करने में गुरेज नहीं करते है। इन अश्लील विडियो से बच्चों को दूर रखकर यौन हिंसा को कम किया जा सकता है।
केयर इंडिया के डीटीओ ऑन डॉ. छाया ने बताया कि यौन हिंसा का सबसे बड़ा कारण महिलाओं में जागरूकता की कमी देखी गई है। जिससे पीड़ित महिलाएं शिक्षा और जानकारी के अभाव में यह समझ नहीं पाती हैं कि वह इस हिंसा का शिकार बन रही है। खास कर छोटी उम्र की बच्चियों के साथ इस तरह के वारदात ज्यादा देखे जा रहे हैं। इस तरह के मामलों में हम सभी की जिम्मेदारी बनती हैं कि यौन शोषण की शिकार महिला या युवतियों को सबसे पहले चिकित्सीय उपचार के बाद सलाह दी जाए ताकि उसका हौसला बढ़े और यह समझ पाए कि उपचार होने के बाद पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। अगर उसे किसी तरह की कानूनी सलाह की जरूरत पड़े तो बेहिचक पुलिस को बुलाकर उसकी सहायता करें।