गोपालगंज

गोपालगंज: हजारो एकड़ में जलजमाव से नही हुई खेती, हजारो एकड़ में लगी धान की फसल बर्बाद

गोपालगंज: भले ही सरकार के द्वारा किसानों की दो गुनी आय बढाने की प्रयास की जा रही है। परन्तु प्राकृतिक आपदा के आगे ना ही किसान की चलने वाली और ना ही इसकी भरपाई सरकार कर पा रही है। मांझा प्रखण्ड अंतर्गत भड़कुइया, छव्ही, गौसिया, पैठान पट्टी, निमुइया, धनखड़ मांझा में जल जमाव के कारण धान की खेती करीब हजार एकड़ में नही हो पाई है। हज़ारो एकड़ में लगी धान की फसल चक्रवर्ती तूफान एवम वारिश के पानी मे डूब जाने के वजह से फसल बर्बाद हो गए। जिससे किसान बेहाल हो गए है।

बारिश के पानी मे फसल डूब जाने के वजह से 75 प्रतिशत पानी में डूबे धान बर्बाद हो गए है। जिसके कारण किसानों की आय दो गुनी होने की बात तो कोसो दूर रही, किसानों की लागत भी नही निकल पाई। किसानों को आशा लगी हुई थी कि सरकार के द्वारा फसल क्षति पूर्ति मुआवजा दी जाएगी, परन्तु किसानों के आशाओ पर पानी उस समय फिर गया जब सरकार के द्वारा गन्ना जो बर्बाद हुई उसी की फसल क्षतिपूर्ति के लिए सर्वे कराया गया। इतना ही नही इस वर्ष जिस तरह से लगातार बारिश की कहर चलते रहने के कारण किसानों के द्वारा की गई सब्जी की खेती भी बर्बाद हो गए तथा गेंहू की बुआई में लेट होने लगी है। किसान 15 नवम्बर तक गेंहू की बुआई कर देते थे। परन्तु अभी भी खेत गिला रहने के कारण खेत की जुताई नही हो पा रही है। वही किसानों के आसमान छूने वाली महंगाई कमर तोड़ दी है।

किसानों ने बताया कि एक एकड़ में करीब 20 हजार की लागत से खेती की गई थी। पानी की वजह से धान की फसल भी अच्छी थी। जिस से ये लग रहा था कि एक एकड़ में करीब 20 क्यूंटल धान की उपज होगी। परन्तु चक्रवर्ती तूफान में धान की फसल पानी में डूब जाने के वजह से एकड़ में 18 क्यूंटल धान बर्बाद हो गए। दो क्यूंटल धान पानी से निकालने और दौड़ी कराने तक किसानों को 10 हजार रुपये एकड़ की हिसाब खर्च करने पड़े। तीन सौ रुपया कट्ठा कटनी और 1400 रुपया घण्टा ट्रेक्टर से दौड़ी करने के लिए खर्च करने पड़े है। किसानो का कहना है कि करीब हजार एकड़ में जल जमाव का कारण खेती नही हो पा रही है। पानी निकाशी के मार्ग बंद है। ना प्रशासन का ध्यान है  और ना ही सरकार का ध्यान है। कही पुलिया के मुंह बंद है तो कही नाला को बंद कर लोग अतिक्रमण किये हुए है। जिसके वजह से जल निकासी के मार्ग बंद है। जिससे किसान बेहाल होते जा रहे है।

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