गोपालगंज: पोषण को प्रभावित करने वाले मानकों में सुधार, सामूहिक सहभागिता से बदलेगी तस्वीर
गोपालगंज: जिले में राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जा रहा है। सरकार द्वारा संचालित पोषण अभियान के लक्ष्यों को हासिल करने के लिहाज़ से राष्ट्रीय पोषण माह को एक प्रभावी कदम समझा जा रहा है। लेकिन पोषण के बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए पोषण को प्रभावित करने वाले मानकों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। सामाजिक, आर्थिक एवं सामूहिक व्यवहार परिवर्तन में सुधार पोषण की बेहतर बुनियाद को दर्शाता है। राष्ट्रीय पोषण अभियान के तहत वर्ष 2022 तक बौनापन, दुबलापन एवं कम वजन के बच्चों में प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की कमी एवं एनीमिया में प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राज्य में पिछले 10 सालों में पोषण को प्रभावित करने वाले मानकों में सुधार हुआ है, जो भविष्य में पोषण अभियान के लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ पोषण के बेहतर परिणामों को इंगित करता है।
कुपोषण कम करने में मिली सफलता:
देश की लगभग 9 प्रतिशत जनसंख्या बिहार में रहती है। इस लिहाज़ से बिहार महत्वपूर्ण रूप से कुपोषण की राष्ट्रीय औसत को प्रभावित करता है। पिछले दस सालों में कुपोषण के मानकों में सुधार आई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार गोपालगंज जिले में बौनापन( उम्र के हिसाब से लंबाई) वर्ष 2015-16 में 35.6 प्रतिशत है। जिले में 15 से 49 वर्ष की प्रजनन आयु की 59.1 प्रतिशत महिलाओं में ख़ून की कमी(एनीमिक) है। 6 माह से 59 माह के 63.3 प्रतिशत बच्चों में ख़ून की कमी थी (एनीमिक) है।
मन्त्रेश्वर झा तकनीकी सलाहकार पोषण अभियान ने बताया आम लोगों को पोषण पर जागरूक करने में राष्ट्रीय पोषण माह प्रभावी साबित होगा। इसके लिए इस पोषण माह में पिछले पोषण की तुलना में दोगुना लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस बार के पोषण माह में राज्य की लगभग 60 प्रतिशत आबादी यानि लगभग 7.60 करोड़ लोगों को पोषण माह के दौरान जागरूक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए जिला स्तर से लेकर सामुदायिक स्तर पर विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही पोषण त्योहार से व्यवहार परिवर्तन पर विशेष बल दिया जा रहा है।
पोषण को प्रभावित करने वाले मानकों में सुधार : पोषण के बेहतर परिणामों में महिलाओं की शिक्षा, बच्चों का पूर्ण टीकाकारण, गर्भावस्था के दौरान आयरन गोली का सेवन, डायरिया के दौरान ओआरएस का सेवन, बच्चों का पूर्ण प्रतिरक्षण, घरों में बेहतर साफ-सफाई की स्थिति, घर में लिए जाने वाले फैसलों में महिला की भागीदारी, 15 से 19 साल के बीच माँ बनना एवं 18 साल से पूर्व शादी करने वाली महिलाओं की स्थिति की भी अहम भूमिका होती है। इन सभी मानकों में पिछले 10 सालों में सुधार देखने को मिला है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार जिले में 63.1 प्रतिशत बच्चों का पूर्ण टीकाकरण, 13.6 प्रतिशित गर्भवती महिला आयरन फॉलिक एसिड गोली का सेवन करती है। वर्ष 2015-16 में 30.8 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम आयु में होती है। बिहार में वर्ष 2005-06 में 60 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम आयु में होती थी, जो वर्ष 2015-16 में घटकर 39.1 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2005-06 में केवल 6.3 प्रतिशत महिलाएं ही गर्भावस्था के दौरान आयरन की गोली का पूर्ण डोज़ लेती थी , जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 9.7 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2005-06 में केवल 32 प्रतिशत बच्चे पूर्ण प्रतिरक्षित होते थे, जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 61 प्रतिशत हो गया।