गोपालगंज सदर अस्पताल में रिश्ते हुए शर्मशार, इलाज के दौरान मृत वृद्ध का शव छोड़ फ़रार हुए परिजन
जब हम छोटे होते है तब वही माता पिता हमसे इतना मोहब्बत करते है की दुनिया के सारे सुख दुःख भूलकर हमलोगों के पालन पोषण में अपना वक़्त बिता देते है। वह चाहते है कि हमारे बच्चे को वह हर सुख मिले जिससे वह कभी भी दुःखी न हो। इसके लिए दिन रात एक करके मेहनत और मज़दूरी करते है। इसी उम्मीद से की जब हमारे बच्चे बड़े होंगे तो हमारा सहारा बनेंगे। लेकिन अभी के दौर में कुछ बच्चे बीते हुए उन दिनों को थोड़ा भी याद नही करते है जिस वक़्त वो छोटे होते है और उनकी हर एक ज़रूर को पूरा करने के लिए माँ-बाप कुछ भी करने के लिए तत्पर रहते है। अफ़सोस की बात है की जब वही बच्चे बड़े हो जाते है तो अपने माँ-बाप की तकलीफ़े भरी ज़िंदगी को याद कर के उनके माथे पर शिकन भी दिखाई नही देता है।
बच्चे जब बड़े होते है माता पिता बहुत खुश होते है की अब हमारे बुढ़ापे का सहारा मेरा बेटा बड़ा हो गाया। लेकिन उस माता पिता को यह मालूम नही होता है जिस बच्चे पर हम भरोसा करते है वही हमे बीच रास्ते में छोड़ कर चले जाते है। कभी कभी यह भी देखने को मिलता है कि बच्चे अपने माता पिता को किसी घर में क़ैद कर देते है या तो किसी आश्रम में छोड़ कर चले आते और फिर अपने कामो में इतना मशगुल हो जाते है कि दोबरा यह भी जानने की कोशिश नही करते है कि जिस माता पिता को छोड़कर आए है वह ज़िंदा भी है या मार गए है। और वो बुज़ुर्ग अपनी तकलीफे अपने दिल के किसी कोने में दबा कर रखे रहते है आखिर अपनी बेबसी का आलम किससे बयान करे।
एक ऐसा ही दिल को झकझोर कर देने वाला वाक़या गोपालगंज के सदर अस्पताल में देखने को मिला। जहाँ माँझा थाना क्षेत्र के मीरा टोला के 55 वर्षीय वृद्ध विक्रम प्रसाद के परिजनों ने उन्हें एक सप्ताह पहले बीमार अवस्था में सदर अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करवाया था और उनका ईलाज़ करा रहे थे। ईलाज़ के दौरान विक्रम प्रसाद की मौत हो गई। वृद्ध के मौत के बाद परिजनों का एक ऐसा चेहरा देखने को मिला जिसे सही देख कर हैरान रह गए। जैसे इंसानियत इस दुनिया से खत्म हो हो गई। पल भर पहले जिस व्यक्ति का पूरा परिवार था अचानक वो लावारिस बन गया। मौत होते ही परिजन विक्रम प्रसाद के मृत शारीर को सदर अस्पताल के उसी बेड पर ही छोड़ कर चले गए जहाँ उनका इलाज चल रहा था। शायद घर वालो को विक्रम प्रसाद का मृत शारीर बोझ लगने लगा था। इसलिए तो उन्हें लावारिश लाश की तरह छोड़कर चले गए।
दुनिया से तो कुछ लेकर जाना तो नही है। लेकिन इतनी बेरुखी क्यों अपनो से हो जाती है, की उन्हें अपनो से दूर कर देते है।