मोदी नहीं अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुने गए “टाइम पर्सन ऑफ द ईयर”
पिछले दो दिनों से भारतीय प्रिंट और टीवी मीडिया में प्रधानमंत्री मोदी को टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर चुने जाने की खबर चल रही है. सोशल मीडिया पर मोदी को बधाई देने वालो की बाढ़ सी आ गयी है. वही मोदी समर्थको तो एक कदम और आगे बढते हुए मोदी की इस उपलब्धि को केजरीवाल के साथ जोड़ते हुए उन्हें टाइम पास ऑफ़ द इयर का ख़िताब देते नजर आये.
भारतीय मीडिया और मोदी समर्थको को बड़ा झटका देते हुए टाइम मैगज़ीन ने अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर के ख़िताब से नवाजा है. हालांकि टाइम के रीडर्स पोल में मोदी ने सबसे ज्यादा वोट अर्जित किये थे लेकिन टाइम की संपादक टीम ने डोनाल्ड ट्रम्प को इसके ज्यादा काबिल पाया. यह उन मीडिया हाउसेस के लिए एक सबक है जिनको संयम करना आता ही नही है.
दरअसल टाइम मैगज़ीन 1927 से टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर चुनती आई है. अभी तक केवल एक भारतीय को यह ख़िताब मिला है. 1930 में महात्मा गाँधी को डांडी मार्च और देश की आजादी में उनके अहिंसा आन्दोलन की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें यह ख़िताब दिया गया. इसके अलावा साल 1999 में टाइम के ऑनलाइन पोल में ,पहलवान व समाजसेवी मिक फोले 50 फीसदी वोट मिले थे जबकि मैगज़ीन ने बिल क्लिंटन और केन स्टार को टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर चुना था.
4 दिसम्बर को खत्म हुए ऑनलाइन रीडर पोल में नरेन्द्र मोदी को 18 फीसदी वोट मिले थे. जैसे ही यह घोषणा हुई की ऑनलाइन पोल नरेन्द्र मोदी ने जीता है, भारतीय मीडिया और मोदी समर्थक यह समझ बैठे की मोदी को टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर चुना गया है. ज्यादातर मीडिया ग्रुप ने यह न्यूज़ भी चलायी. इसके अलावा फेसबुक और ट्वीटर पर भी यही ट्रेंड देखने को मिला.
कुछ मोदी समर्थक तो ऑनलाइन पोल की जीत से इतने मदमस्त हुए की उन्होंने केजरीवाल के साथ मोदी की एक पिक्चर शेयर करने शुरू कर दी. इसमें मोदी को टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर दिखाया गया जबकि केजरीवाल को टाइम पास ऑफ़ द इयर बताया गया. लेकिन शायद उन समर्थको को यह भी नही मालूम था की टाइम का ख़िताब ऑनलाइन पोल जीतने पर नही दिया जाता बल्कि मैगज़ीन की सम्पादकीय टीम यह फैसला करती है की इस साल टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर का ख़िताब कौन जीतेगा.
जानकारों का कहना है की टाइम के पोल में ज्यादतर वो ही लोग वोट करते है जो किसी व्यक्ति के समर्थक होते है और उनको ही जीतता देखना चाहते है. वो इस आधार पर वोट नहीं करते की उस व्यक्ति की इस साल की क्या उपलब्धिया है. देखा जाए तो इस साल मोदी की कोई भी उपलब्धि नही है. उधर डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में टाइम की और से कहा गया की उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव जीतकर यह दिखाया की सच उतना ही शक्तिशाली होता है जीतना विश्विसनीय उसको बोलने वाला होता है.