ब्लॉग : कल और आज….
आईये हम सब मिलके बात करते है कल और आज की। कल जो बीत चूका है उसको याद करते है हम, और आज जो हमारे हाथ में है उसे आने वाले कल के लिए बर्बाद कर देते है।आज हम देख रहे है कि मौसम, जीने के तरीके, रश्मो-रिवाज, ख़ुशी के पल, यहाँ तक की इन्सान इत्यादि सब बीते हुवे कल के मुकाबले बदल चुके है और इसका मुख्य कारण है हमारी सोच, हमारी खोती हुवी भारतीय संस्कृति। मै कहता हूं कि जमाना नहीं बदलता ये वही है केवल इसके नाम बदल जाते है जो की भविष्य में और कई नामो से जाना जायेगा। आखिर हमसे कहाँ चुक हो रही है कि इतनी दुःख भरी जिंदगी का सामना करना पड़ रहा है इन सब का जिमेद्वार कहीं हम खुद तो नहीं, बेशक हम खुद ही है। गुज़रे हुवे कल में कोई भी फैसला बुजुर्गो/बुद्धजीवी द्वारा की जाती थी जोकि उनके तमाम उम्र की तजुर्बे पे आधारित होती थी और हमे सम्मान के साथ स्वीकार करना पड़ता था पर आज हम महज़ जिंदगी के पहले पायदान पे चढ़े बिना ही फैसले खुद लेते है जिस से हमारी हजारो वर्षो पुरानी संस्कृति खत्म होते हुवे नजर आ रही है। वो गंगा जमुना तहजीब, वो एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होना महज एक इतिहास बन के धीरे-धीरे किताबो के पन्नो में सिमटने वाली है। हमे गौर करने की जरुरत है कि जब हमारे भगवान्/ईश्वर/गॉड/अल्लाह और उनका सिद्धान्त नहीं बदला तो जमाना कैसे बदल गया, बदल गयी है तो हमारी सोच, सिद्धान्त जिसे हमे सही दिशा में इस्तेमाल करने की सख्त जरूरत है। आज के ज़माने में हर कोई अपने जिद्द को हासिल करने में लगा है पर वो जिद्द उसके लिए कितनी घातक होगी इसका अंदाजा तब होती है जब जिंदगी के आखरी लम्हे में बैठ के अपने बीते हुवे कल को याद करता है। हम सब के अंदर अच्छाई-बुराई दोनों है फर्क इतना है कि बीते हुवे कल में बुराई पे काबू था आज जिद्द में अच्छाई पे काबू पा लिए है।
आईये अब बात करते है कुछ आज के इस अद्भुत युग से जिस में हम देख रहे है कि जिद्द से जो चाहते है वो तो हाशिल हो रहा है पर खत्म हो रही है तो इंसानियत, मुहब्बत, प्यार और बढ़ रही है तो धार्मिक भेदभाव, गरीबी, जातीयता, बेरोजगारी इत्यादि क्योंकी हम उस रास्ते से भटक चुके है जो हमारे पूर्वजो ने अपने जिंदगी भर के तजुर्बे को हम सबको स्वगात में दिया है। हमारी सोच आज धार्मिक भेदभाव, राजनितिक मज़बूरी, पारिवारिक परेशानी में इस कदर खो गयी है कि सोच अब इन्सान की नहीं एक जानवर के सोच जैसे लगने लगा है। उदहारण के तौर पे राजनीती को ही ले लीजिए जिसमे आज कुछ वर्षो से देख रहे है कि चुनाव के समय ही धार्मिक भेदभाव शुरू हो जाते है जिस से लोग आपस में लड़ के इंसानियत का खून करे और इसका सीधा और साफ़ तौर पे फायदा उन धुरंधरों को हो जिसने ये धार्मिक भेदभाव लोगो के मन में डाल दिया है। हमें पता है कि इन्सान एक कोरा कागज है और इसपे जब चाहे जो चाहे कुछ भी लिख सकता है पर अच्छाई और बुराई को अलग करना हम इन्सान के हाथ में है। कल यही सुनते थे की फलाना नेता जी ने उस गरीब को घर, चापाकल,अनाज दिलवाया आज सुन रहे है कि फलाना नेता जी के वजह से उस गांव में दंगे हुवे जिस से उस गरीब का घर तोड़ दिया गया उसका सारे सामान दंगाई द्वारा जलाया व लूटा गया और ये सब उस दो पैसिया सोच वाले व्यक्ति के वजह से जो धार्मिक भेदभाव फैला के लोगो के दिल में एक दूसरे के प्रति घृणा पैदा कर दे रहा है बस अपने आप को कुर्सी पे बैठे रहने के लिए, पर दोष उसका नहीं दोष हम सबकी है जो अपने पूर्वजो को दी हुवी सिख, धार्मिक किताबो को भूलके उस आदमी के बातो में आ जा रहे है जो हमे इस वजह से लड़ा रहा है कि उसकी कुर्सी हमेशा बनी रहे पर अब हमें जरुरत है सोच को बदलने की जरुरत है एकजुट होने की जरुरत है आपसी धार्मिक मतभेद भुलाने की तब जाके हमारा देश गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी से हट के एक खुशहाल देश बनेगा जिसका फायदा हमे और हमारे आने वाले पीढ़ियों को ही मिलेगा। उपर वाले ने दिमाग सबको दिया है पर सही इस्तेमाल कोई नहीं कर पा रहा है अब देखिये न कल हम एक दूसरे के त्यौहार में शामिल होकर ख़ुशी दुगुनी करते थे और आज हम त्यौहार मनाने के दौरान उत्पन्न झगड़ो और दंगो से कुछ दिनों तक दुःख का सामना करते है। हम सब जानते है कि जब तक दुनिया रहेगी अच्छाई और बुराई का चोली दामन का साथ रहेगा लेकिन इंशान को हमेशा एक खुशहाल जिंदगी के लिए अपने अंदर बुराई की मात्रा को कम रखनी होगी। शायद आपको ये भी पता होगा की जो फल सबसे खट्टा होता है वो कुछ बून्द बारिश के पानी से सबसे मीठा हो जाता है आखिर क्यों? ऊपर वाले ने दुनिया में देखने को हमे लाखो उदहारण दिए है पर अफसोश की उस को हम इंशान अपने अंदर नहीं ढालते। हम सबको पता है उस नेता जी को हमने चुना है वो हमको नहीं चुने है इसलिए नेता जी को हम जो कहे वो करना होगा ये नहीं की नेता जी जो कहे वो हम इन्सान करे कतई नही। अगर हमें भी उस फल के तरह सबसे मीठा होना है तो उस पानी को तलाशना होगा और वो पानी हमे तभी मिलेगी जब हम अच्छे लोगो के बारे में पढ़ेंगे, अपने धार्मिक किताबो में ढूंढेंगे, पूर्वजो/बुजुगों/बुद्धजीवियों की दी हुवी सीख और तजुर्बे को अपनाएंगे, उनमें तलाशने की कोशिश करेंगे। हम बिलकुल उन नेताओ में नहीं तलाशेंगे जो विकास के बातो से हटके हमें धार्मिक सिख दे, जीने के तरीके सिखाये, हमारी खंडन करना चाहे और तब जाके हम धार्मिक लड़ाई, भेदभाव से अलग एक खुशहाल जिंदगी जी पाएंगे तथा खुशहाल देश अपने आने वाले पीढ़ियों को देंगे जिस से हमारी आने वाली नसले तबाह व बर्बाद होने से बचेगा, हमारी संस्कृति जिन्दा रहेगा और हमारे वजूद को दुनिया की कोई भी ताकत मिटा नहीं पायेगा तो आइए हम सब मिलके ये सपथ लेते है की अपने हिंदुस्तान के वजूद को बचाने के लिए हम अपने शरीर के ऊपरी हिस्सा दिमाग का सही इस्तेमाल करेंगे, किसी के बहकावे में आके कतई कोई फैसले नहीं लेंगे ख़ास करके अगर धार्मिक मामले हो तो हरगिज नहीं।
नोट-ये मेरे अपने खुद के बिचार है अगर किसी को पसंद आती है तो बेहद ख़ुशी की बात है पर किसी भी व्यक्ति विशेष को अगर ठेश पहुचती है तो मै उन सब से माफ़ी चाहता हु।
-इंजीनियर शाहिद कैशर(मांझा गद्दीटोला,मांझा गढ़,गोपालगंज,बिहार)
शुक्रिया आपका जगह देने के लिए
Awesome blog shahid bhai and many thank to team awaztimes for publish this blog on this site. I can’t express my happiness in words that people from our motherland are writing in such a fantastics way