राहु और केतू ग्रह, ज्योतिष विज्ञान और आधुनिक समाज के बीच बहस का बना रहता है विषय
नमस्कार दोस्तों, मैं मानस मुखर्जी, ज्योतिषाचार्य एवं तंत्र विज्ञान विशेषज्ञ आज ऐसे ग्रह पर बात करने जा रहा हूं जो ज्योतिष विज्ञान और आधुनिक समाज के बीच बहस का विषय बना रहता है। मैं बात कर रहा हूं राहु और केतू ग्रह के बारे मे, जिसकी चर्चा ज्योतिष शास्त्र मे हमेशा होती है पर कुछ पढ़े लिखे अल्पज्ञानी सौर्य मंडल मे नौ ग्रह को ही जानते है। और उस नौ मे से उन्हें राहु और केतु नजर नहीं आता है। बस परेसानी यहीं से चालू हो जाता है। बात को आगे बढ़ाते हुए मैं ये बताना चाहूँगा कि 2006 मे International Astronomical Union ने प्लूटो के ग्रह की श्रेणी से हटा कर उसे ड्राफ़्ट प्लेनेट यानी कि बौना ग्रह घोषित कर दिया। इस प्रकार हमारे सौर्य परिवार मे सिर्फ आठ ग्रह ही रह गए, लेकिन इसके अलावा नहीं दिखाई देने वाला राहु और केतु को आदि काल से ही ज्योतिष विज्ञान मे छाया ग्रह माना गया है।
राहु और केतु सौरमंडल में बनने वाली वह खगोलीय स्थिति है जहां चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा को काटती है। अंग्रेजी में इसे नाॅर्थ लूनर नोड और साउथ लूनर नोड कहा जाता है। राहु और केतु का उल्लेख भारतीय दर्शन सहित वैदिक ज्योतिष में देखने को मिलता है। भारतीय दर्शन में इन्हे खतरनाक दैत्य की संज्ञा दी गई है, वहीं वैदिक ज्योतिष में इन्हे महत्वपूर्ण छाया ग्रह माना गया है। आम जन-मानस में इन ग्रहों को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है, लेकिन वैदिक ज्योतिष में इन ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों के साथ ही सकारात्मक प्रभावों का भी उल्लेख मिलता है। इन छाया ग्रहों की सबसे बड़ी खूबी या कमज़ोरी यह है कि ये ग्रह हमारे सौरमंडल में प्रत्यक्ष रूप में मौजूद नहीं है बल्कि यह एक स्थिति है जो सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की गोचर कक्षाओं के आपस में एक दूसरे को काटने से पैदा होती है।
बता दें कि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के कारण ही कालसर्प योग का निर्माण होता है. मान्यता यह भी है कि राहु-केतु की स्थिति व्यक्ति के पक्ष में न होने से उसका जीवन में बहुत परेशानियां आ जाती हैं. हर कार्य में रुकावटें आती हैं.
इन सब चीजों के कारण तनाव इतना बढ़ जाता है कि स्थितियों को संभाल पाना भी मुश्किल हो जाता है. इसी कारण लोग राहु-केतु का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं. अगर आप भी राहु-केतु के अशुभ प्रभावों की वजह से परेशान हैं, तो हम बता रहे हैं राहु और केतु के दुष्प्रभावों के लक्षणो और बचने के कुछ उपायों के बारे में.
कुंडली में राहु-केतु की स्थिति खराब होने के लक्षण
1.नकारात्मक विचार आना।
2.विवाह में विलम्ब होना।
3.जीवनसाथी की अकाल मृत्यु होना।
4.मेहनत करने के बावजूद व्यापार और नौकरी में असफलताएं मिलना।
5.उपचार के बाद भी संतान न हो पाना।
6.जीवनसाथी से अकारण विवाद होना।
राहु-केतु ग्रह की शांति के लिए नियमित 108 बार इसके बीज मंत्र (राहु का बीज मंत्र – ॐ रां राहवे नमः एवं केतु का बीज मंत्र –ॐ क्र केतवे नमः) का जाप करें। इस तरह आपको 18000 बार दोनों के बीज मंत्र का जाप करना है। जब यह संख्या पूरी हो जाए, तब आप इस मंत्र के जाप को बंद कर सकते हैं। हनुमान जी की पूजा करें।
इसी के साथ अपनी लेखन को यहीं विराम देता हूँ। उम्मीद करता हूं आपको जरूर पसंद आया होगा।
बहुत जल्द मिलूंगा दूसरी विषय पर चर्चा के साथ
धन्यबाद
मानस मुखर्जी (ज्योतिषाचार्य)
बोकारो झारखंड .