गोपालगंज: भाई के लम्बी उम्र के लिए बहनो ने रखा रूद्रव्रत, कई जगहों पर किया गया मेले का आयोजन
गोपालगंज: भाई-बहन की असीम प्रेम व स्नेह का पर्व रूद्रव्रत पीड़िया बुधवार की रात बहनों ने बड़े ही धूमधाम व हर्षोउल्लास के साथ मनाया।गुरुवार की अहले सुबह प्रखंड क्षेत्र के गंडक नदी, झरही नदी, तेतरियां तालाब आदि जलासयों में पीड़िया को बहाकर भाईयों की दीर्घायु होने की भगवान सूर्य से कामना की। इस मौकै पर तेतरियां, किलपूर कांटा, डेरवां, जमुनहां आदि नदियों व जलासयों पर मेले का आयोजन किया गया।
बोलचाल की भाषा में पीड़िया के नाम से प्रचलित रुद्रव्रत पीड़िया को ज्यादातर लड़कियां ही करती हैं। वे इस व्रत के माध्यम से रात भर जागकर बहनें पीड़िया के गीतों के माध्यम से ही पूजा विधि विधान से कर अपने भाईयों की खुशहाली, लंबी उम्र, सुख समृद्धि की कामना की।
आचार्य पं अजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि पौराणिक कथाओं में इसका महत्व प्राचीन काल से ही बताया जाता है। इसकी शुरुआत गोवर्धन पूजा के दिन से ही हो जाती है। गोवर्धन पूजा के गोबर से ही घर के दीवारों पर छोटे-छोटे पेड़ों के आकार में लोक गीतों के माध्यम से पीड़िया लगायी जाती है। इस दौरान लड़कियां घर की बुजुर्ग महिलाओं से अन्नकूट से कार्तिक चतुर्दशी तक छोटी कहानी व कार्तिक पूर्णिमा से अगहन अमावस्या तक सुबह स्नान कर बड़ी कहानी सुनती है। व्रत के दिन छोटी बड़ी दोनों कथाएं सुनती हैं। इस व्रत में नए चावल व गुड़ का रसियाव (गुड़ चावल का बिना दूध का खीर) बनाया जाता है। व्रती दिन भर उपवास रहने के बाद शाम को सोरहिया के साथ ग्रहण करती हैं। खास बात ये है कि धान की संख्या भाईयों की संख्या के अनुसार होती है। यानि व्रत रखने वाली लड़की के जितने भाई होते हैं, उसी संख्या के हिसाब से प्रति भाई 16 धान से चावल निकलवाकर वो सोरहिया निगलती है। व्रत के बाद इस पेड़ों को सुबह तालाब या नदी, पोखरों में पीड़िया के पारंपरिक गीतों के साथ बड़े ही उत्साह से विसर्जित करती हैं। साथ ही कन्यायें आपस में चिउड़ा और मिठाई एक-दूसरे से आदान-प्रदान करती हैं, फिर पारन कर व्रत तोड़ती हैं।