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मिड डे मिल में मिलने वाला अंडा छिपाकर घर ले जाता है यह बच्चा

झारखंड के गोड्‌डा जिला के पांडुबथान सरकारी विद्यालय के कक्षा तीन में पढ़ने वाले अमित कोड़ा को नहीं पता कि मदर्स डे क्या है। करीब 9 वर्ष का यह बच्चा इतना जरूर जानता है कि उसकी मां के लिए अंडे खाना सबसे ज्यादा जरूरी है। टीबी रोग की मरीज सावित्री की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं की वह पौष्टिक आहार ले सके, जबकि डॉक्टरों ने इन्हें खाने को कहा है। मां की हालत ने उसे स्कूल में मध्याह्न भोजन में मिलने वाले अंडे को छिपाकर घर लाने की युक्ति सूझी। अमित हर सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को इसी तरह मां के लिए अंडे लाता है।

नौ साल के इस ‘बुजुर्ग’ बच्चे की अब सिर्फ एक ही चिंता है कि अंडा खाकर उसकी मां टीबी से मुक्त हो जाए, ताकि ममता की छांव उसे बराबर मिलती रहे। वह कहता है, अगर मां ही नहीं रहेगी तो मुझे स्कूल कौन भेजेगा? जब मां ठीक हो जाएगी तो मैं अंडा खाने लगूंगा। उसने बताया कि मां आधा अंडा मुझे खिलाने की जिद करती है, पर मैं उनकी बात नहीं मानता हूं।

सावित्री की चार बेटियां हैं – कविता, रेणु, बबिता और पूजा। अमित इकलौता बेटा है। सावित्री टीबी की दवा डॉट्स के माध्यम से खा रही है। डॉक्टरों ने उसे अंडा खाने को कहा था। सावित्री घर में अक्सर बोलती, भरपेट भोजन के लिए ही रुपए नहीं है तो अंडा आखिर कहां से खरीदेंगे? मां की यह बात अमित को रोज भेदती थी। लेकिन वह सोचकर भी मां के लिए कुछ नहीं कर पाता।

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