गोपालगंज की आशा कार्यकर्ता अनिता की कर्तव्यनिष्ठा से बदली महिलाओं और ग्रामीणों की सोच
गोपालगंज: एक वक्त ऐसा था जब गांव की अधिकतर महिलाओं का प्रसव घर पर हीं होता था। लोगों में जागरूकता का अभाव और स्वास्थ्य कार्यक्रमों जानकारी नहीं थी। लोग गृह प्रसव को प्राथमिकता दे रहें थे। संस्थागत प्रसव की संख्या काफी कम थी। गृह प्रसव मातृ-शिशु मृत्यु का मुख्य कारण भी है। जच्चा-बच्चा के सुरक्षा के दृष्टि से गृह प्रसव कहीं से भी सुरक्षित नहीं है। लेकिन इस गांव की आशा कार्यकर्ता की कर्तव्यनिष्ठा और मेहनत के बदौलत इस गांव लोगों के सोच में बदलाव लाया और गांव की तस्वीर बदल गयी। हम बात कर रहें गोपालगंज जिले के थावे प्रखंड के जगमलवा पंचायत के बेदुटोला गांव की आशा फैसलिटेटर अनिता देवी की। जिन्होने संस्थागत प्रसव के राह को आसान करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निवर्हन किया है।
प्रशिक्षण से कार्य में आया निखार: मातृ- मृत्यु एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए आशा अनिता को ट्रेनिंग दिया गया और बताया गया जो प्रसव घर पर हो रहे है। आप परिवार के लोगों को जागरूक और प्रेरित करें। जिससे लोग प्रसव प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कराएंगे। उस समय उनके क्षेत्र में ज्यादातर महिलाओं की प्रसव घर पर ही हो रहा था। एक दंपति को चार – से पांच बच्चा होता था। लेकिन मुख्य रूप से दो से तीन ही बच्चे जीवित रहते थे। इसका मुख्य कारण प्रसव घर पर होना था दाई ट्रेंड नहीं होती थी। बच्चे का जन्म कभी-कभी जमीन पर ही हो जाता था । बच्चे को जन्म के समय जो टीका लगाना चाहिए। वह टीका नहीं लगाया जाता था। बच्चे का नाल कभी- कभी पुराने ब्लेड से ही काट दिया जाता था तो कभी – कभी बच्चे की मृत्यु टेटनस से हो जाता था। इन सब कारणों से घर पर प्रसव होने के कारण मां एवं शिशू की मृत्यु दर ज्यादा था।
चुनौतियों से भरा था लोगों को जागरूक करना: आशा फैसलिटेटर अनिता देवी बताती हैं कि “जब अपने क्षेत्र के गर्भवती महिलाओं को प्रसव के संबंध में जागरूक करने के लिए उनके घर जाती थी। यह काम बिल्कुल आसान भी नहीं था। गर्भवती महिलाओं से सीधा संवाद नहीं कर पाती थी, महिला की सास-ससुर और ननद को समझाना पड़ता था। आशा अनिता अपने कार्य क्षेत्र में तीन से चार आशा मिलकर किसी निश्चित स्थान पर 20-25 महिलाओं को जमा करके रोलप्ले करती है। जिनमें कोई सास बनती, कोई गर्भवती बहू बनती, कोई आशा बनती घर से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव होने तक के सारे स्थितियों को रोलप्ले के माध्यम से महिलाओं को जागरूक करती है।
आशा की तत्परता से जच्चा-बच्चा को मिला जीवनदान : आशा अनीता एक घटना को बताते हुए कहती है कि एक बार मेरे कार्य क्षेत्र में एक परिवार में बहू गर्भवती थी। उनके परिवार के लोगों को मैं हमेशा समझाया करती थी कि प्रसव आप प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में ही कराना है। जच्चा और बच्चा दोनों स्वास्थ्य रहेंगे। साथ ही सरकार की तरफ से 1400 रुपए भी दवा के लिए दिए जाएंगे। वे हां में हां मिलाते रहते थे। लेकिन जब प्रसव करवाने का समय आया तो परिवार के लोग घर पर ही प्रसव करवा दिए मां बेहोस हो गई थी। बच्चा सीरियस हो गया। तो मेरे पास कॉल किए। मैं कपड़ा धो रही थी। मेरा पूरा शरीर भिंगा हुआ था मैं उसी समय पीएचसी में कॉल करके एंबुलेंस बुलवाई दोनों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र थावे लेकर गई जहां पर उपचार किया गया। मां और शिशू दोनों बच गए। उस वक्त मेरा पूरा कपड़ा खून से गीला हो गया था। मेरे कार्य क्षेत्र में चारों तरफ चर्चा होने लगी कि आशा बच्चे और बच्चे की मां को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर लेकर गई इसलिए मां और बच्चा दोनों बच गए। क्षेत्र के लोगों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रति विश्वास बढ़ता गया।