गोपालगंज: हमारे दुखों का कारण कोई और नहीं बल्कि हमारी इच्छाएं हैं, अपनी इच्छाओं को सीमित करो
गोपालगंज: हमारे दुखों का कारण कोई और नहीं बल्कि हमारी इच्छाएं हैं। सभी इच्छाएं किसी भी व्यक्ति की पूरी नहीं होतीं। स्वयं राम के पिता दशरथ की इच्छा पूरी नहीं हुई तो हम और आप किस गिनती में आते हैं। यदि दुखों से बचना चाहते हो तो अपनी इच्छाओं को सीमित करो। उक्त बातें पंचदेवरी के नंद पट्टी में चल रहे शतचंडी महायज्ञ के पांचवें दिन मानस मर्मज्ञ रामअवध शुक्ल रामामणी ने कही।
उन्होंने कहा कि रामायण की हर चौपाई हमें कुछ न कुछ ज्ञान प्रदान करती है। भाई कैसा हो, पति-पत्नी का प्रेम कैसा होना चाहिए, ये हमें रामायण सिखाती है। पुत्र कैसा होना चाहिए पिता की एक आज्ञा में सारा राजपाट छोड़कर चौदह वर्ष वनवास ग्रहण कर लिया ये होता है पुत्र धर्म। वास्तविकता में पुत्र वही भाग्यशाली है जो माता-पिता की आज्ञा पालन में जीवन बिताते हैं। पति-पत्नी का धर्म रामायण सिखाती है। पति-पत्नी एक -दूसरे के पूरक होते हैं। एक के बिना दूसरे का जीवन नीरस होता है। इसका पता तब चलता है जब एक दूसरे से अलग हो जाओ। इसलिए लोगों को रामायण का अनुकरण करना चाहिए।
वहीं कथा वाचिका सुश्री अर्चना मिश्रा ने कहा कि राम विवाह राजनैतिक दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण घटना है। रावण के अत्याचार से त्रस्त संसार को मुक्त कराने के लिए महात्मा विश्वामित्र ने यज्ञ रचाकर राम लक्ष्मण को जनकपुर तक पहुंचा दिया। धनुष यज्ञ का आध्यात्मिक स्वरूप यह है कि साधक का हृदय ही जनकपुर का रंगमंच और अंत:करण का अभिमान ही शंकर का विशाल धनुष है। आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे मन में चंद्रमा, बुद्धि में ब्रह्मा, चित्त में विष्णु और अहंकार में शिव का निवास है। उन्हीं शिव का यह धनुष, अहंकार का स्वरूप है। भगवान श्रीराम ज्ञान और सीता जी भक्ति हैं। हमारे हृदय में ज्ञान-भक्ति का मिलन ही सीता-राम विवाह है। किंतु अहंकार बाधा बना हुआ है। जब तक इसका विनाश नहीं होगा, ज्ञान भक्ति, जीव, ब्रह्म, प्रकृति, पुरुष, सीता-राम का मिलन असंभव है। उन्होंने कहा महाराज जनक योगी हैं और एक योगी यही चाहता है हमारे अंत:करण का अहंकार कोई तोड़ दे और श्रद्धा रूपी सीता में परमात्मा को समर्पित कर दूं।