सीवान

सिवान: इंतजार कब तक, वर्षों से बंद है सुता फैक्ट्री, केवल चुनाव के समय चर्चा में रहता है सुता फैक्ट्री

सिवान: चाहिए दो जून की रोटी, और कोई कारण नहीं विशेष। पलायन पर किसी कवि की रचना सिवान से बाहर जाकर काम करने वाले लाखों लोगों पर सटीक बैठती है। रोजी-रोजगार की तलाश में सिवान से हर साल हजारों लोग देश-विदेश में पलायन करते हैं। सिवान से खुलने वाली ट्रेनों में जाने वालों की भीड़ और पर्व-त्योहार में लौटने वालों और इस कोरोना वायरस जैसे महामारी में लोगों को अपने घर लौटने की जल्दी इसे साबित भी करता है। लेकिन सीवान की इस मूल समस्या पलायन पर राजनीतिक दलों के बीच कोई चर्चा नहीं होती है। पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे को मात देने में जुटा रहता है पर कोई भी जनप्रतिनिधि बन चुके स्थायी समस्या के समाधान का जिक्र नहीं करता है।

सीवान से हर साल कितने लोग बाहर रोजी-रोजगार के लिए जाते हैं, इसका कोई अधिकृत आंकड़ा नहीं है। सरकार जहां विकासात्मक कार्यों का हवाला देती है तो दूसरी दुसरी ओर सुता फैक्ट्री सरकार की उदासीनता का प्रतीक हैं। वैसे तो अक्सर सिवान की सियासत की बात होती है लेकिन आज हम सिवान जिले के अर्थव्यवस्था के बारे में बताने जा रहे हैं। इंडस्ट्री के नाम पर यहाँ बताने जैसा कुछ नहीं है। सुता फैक्ट्री जैसी मिलें थी तो वह भी दशको से बंद पडीं है। जो अपनी बदहाली कहें या जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं जाना।

सिवान शहर जो कभी लगभग खुशहाल था। इनकी खुशहाली का राज इनके यहाँ सुता फैक्ट्री जैसी इंडस्ट्री थी। सिवान सुता फैक्ट्री बंद होने के बाद काम करने वाले मजदूर फिलहाल कंगाली के दौर से गुजर रहे थे। जो रोजी रोटी के तलाश में पलायन कर गए। सुता फैक्ट्री में ताला लगा तो इन फैक्ट्री में कार्य करने वाले मजदूर को रोटी के लाले भी पड़ने लगें। राज्य सरकार की ढुलमुल रवैया कहें या जनप्रतिनिधियों का सुता फैक्ट्री के लेकर उदासीनता, वर्षों से सीवान का सहकारी सुता मिल बंद पड़ा है। इसमें लगे मशीनों को स्थानीय प्रशासन की उदासीनता के बाद चोरों ने चोरी कर लिया और इसे देखने वाला इसकी आवाज उठाने वाला कोई आगे नहीं आया। जिले के कोई विधायक और सांसद ने भी इस बंद पड़े सुता मिल की चर्चा करने की जरूरत नही समझे। जब चुनाव आता है तो इन सांसद और विधायकों को बंद पड़े मिल की याद आ जाती है।

बंद सुता फैक्ट्री मिल की परिसंपतियों को देखने वाला आज कोई नहीं है। फैक्ट्री की मशीनों में लगे तांबे, पीतल व लोहे लोग नोच कर ले जा रहे हैं। फैक्ट्री के गेस्ट हाउस व स्टोर रूम की लकड़ियां व लोहे भी लोग उठा कर घर ले जा रहे हैं। फैक्ट्री का कोई केयर टेकर नहीं और स्थानीय प्रशासनिक व पुलिस अफसरों को भी रोज हो रही चोरी इसकी परिसंपत्तियों से मतलब नहीं है।सिवान सुता फैक्ट्री सांसद विधायक के आश्वासन व वादे के बाद भी नहीं चालू हो सका। इस फैक्ट्री के बंद होने के बाद यहां के किसान व मजदूर आर्थिक रूप से बदहाल हो चुके हैं।

बता दे कि लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। प्रतिनिधि आते है बडे़ दावे करते हैं और चुनाव जीत के बाद इसकी आवाज उठाने की जहमत भी नहीं उठाते हैं और यह जैसे के तैसे ही रह जाता है। जिसे उनका चुनावी वादा भी छलावा साबित होता है। चुनाव संसदीय हो या विधानसभा की यहां के मजदूर और सुता फैक्ट्री के मसले को चुनावी मुद्दा बनाते रहे हैं। बनते मुद्दे को आश्वासन तो मिलते रहे हैं, लेकिन किसान-मजदूरों का मिल चलने का सपना अबतक पूरा नहीं हुआ।

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