शिवहर

कही चीत्कार तो, कही खामोशी, कही रंज तो, कही बेबसी, ऐसा ही कुछ आलम था मुज़्ज़फ़रपुर का- आदित्य कुमार

शिवहर- जी हां…सही समझ रहे हैं आप। मैं मुजफ्फरपुर के SKMCH अस्पताल की ही बात कर रहा हूँ जहां हर तरफ मौत का कहर है। हर तरफ हमारे देश के भविष्य, नौनिहालों का बिखड़ा पड़ा है शव. हर तरफ चीखते चिल्लाते परिजन। हर तरफ करूणा, वेदना, जहां किसी का भी मन रुधनावस्था में चला जाये। सामने में दम तोड़ते वो नौनिहाल जो हमारे देश के कल का भविष्य था।

अव्यवस्था का एक नमूना बना SKMCH जहां न तो प्रयाप्त बेड, न ही प्रयाप्त डॉक्टर, न ही प्रयाप्त इक्यूपमेंट, न ही प्रयाप्त मशीनरी और न ही प्रयाप्त मेडिसीन! जहाँ लगभग 130 बच्चों की जान चमकी बुखार (AES: एक प्रकार की बीमारी) से जा चुकी है और ये मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। पता नहीं ये मौत का आंकड़ा कहाँ जाकर रुकेगा। हमारे नेताओं ने विकास-विकास का इतना नारा दिया लेकिन इस सदी में लोग एक प्रकार के बुखार से मारे जाए फिर ये कैसा विकास?

क्या ये सरकार या व्यवस्था पिछले वर्ष के उन नौनिहालों के मौत पर इतने भी संवेदनशील नहीं हो सकते थे और समय रहते इससे बचने के लिए कोई तरकीब नहीं ढूंढ सकते थे?अगर समय रहते प्रयास किया जाता तो आज ये नौवत नहीं आती। मुजफ्फरपुर में आज लाशों का ढेड़ नहीं लगा होता। SKMCH आज शवगाह नहीं बना होता।कुछ नेतागण आसानी से ये कह कर अपना पल्ला झाड़ लिए कि मरने वाले बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। तो ये महानुभाव ये बताना क्यो भूल गए कि इनके इस विकासवादी साम्राज्य में भी बच्चे कुपोषित कैसे रह गए? आखिर इनके विकास की धारा इन तक क्यो नहीं पहुंच पाया?

असंवेदनशीलता तो देखिए सरकार के नुमाइंदे, नेता अथवा मंत्रीगण का। अस्पताल में आते हैं दर्द बांटने लेकिन बड़बोले बयान देने के अलावे कुछ नहीं कर पाते हैं। इस बिपदा के घड़ी में भी कुछ लोग एक दूसरे को फूल देते दिखते हैं तो कोई सोते दिखते हैं असंवेदनशीलता का प्रकाष्ठा तब पार हो जाता है जब किसी प्रदेश में इतनी बड़ी बिपदा आन पड़ी हो और वहां के मुखिया एक शब्द भी ना निकाल पाए। ना ही परिजनों के दुख, दर्द और वेदना को बांटने का प्रयास करें।

शवगाह बना है अस्पताल, संवेदनहीन बन बैठी है सरकार।

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