खादी पर टैक्स लगने से बुनकर और व्यापारी परेशान, आजादी के बाद पहली बार खादी पर लगा टैक्स
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील और कोशिश ने खादी का कायापलट कर दिया है। जब से पीएम मोदी ने युवाओं से खादी पहनने की अपील किए हैं, उसके बाद खादी उत्पादों की बिक्री में जबरदस्त मांग देखने को मिल रहा है। लेकिन एक जुलाई से लागू हुए वस्तु एवं सेवा कर(GST) के दायरे में अब खादी भी आ गई है।
जी हां, एक तरफ देश चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष मना रहा है, दूसरी तरफ गांधीजी की खादी पर पहली बार टैक्स लगाया गया है। आजादी के बाद पहली बार खादी पर जीएसटी के रूप में टैक्स लगा है। इससे बुनकर और खादी पहनने वाले परेशान हैं। बुनकरों को न तो कच्च माल मिल पा रहा है और न ही उनके कपड़े बाहर जा रहे हैं।
‘हिंदुस्तान’ के मुताबिक, बुनकरों और दुकानदारों का दावा है कि जीएसटी लगने से 75 प्रतिशत खादी कारोबार प्रभावित हुआ है। इसे देखते हुए विशेष तौर से बिहार के कई खादी ग्रामोद्योग संघ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में गांधीजी की खादी को बचाने की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि ऐसे में दूसरे कपड़ों से खादी कैसे मुकाबला कर पाएगा।
जीएसटी लागू होने के बाद खादी की दुकानों में ग्राहक पहुंच तो रहे हैं, लेकिन दाम सुनते ही बैरंग वापस चले जाते हैं। दुकानदारों का कहना है कि सरकार अगर कोई कदम नहीं उठाती है तो खादी वस्त्रों की बिक्री का बंटाधार हो गया है। अखबार को व्यापारियों ने बताया कि खादी के एक हजार रुपये के कपड़ों पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगेगा। एक हजार से ऊपर वाले रेडिमेड व वस्त्रों पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगेगा।
क्यों लगाया गया टैक्स?
दरअसल, कच्च माल मंगाने के लिए जीएसटी नंबर की जरूरत है। बुनकरों का कहना है कि ट्रांसपोर्टर जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर मांग रहे हैं। ऐसे में तैयार माल न तो बाहर भेज रहे हैं और न ही कच्च माल मंगा पा रहे हैं। दूसरे राज्यों और देशों से मिले ऑर्डर को बुनकर पूरा नहीं कर पा रहे हैं।