मिलिये इस माँ से जो अपना दूध दान कर बचा रही है, नवजातों का जीवन
हमारे समाज की एक ख़ास बात ये है, कि अगर कोई महिला कुछ करना चाहे तो सबसे पहले उसे घर से लेकर बाहर तक तरह तरह की बातें सुनने को मिलती हैं. लेकिन कुछ महिलायें हैं जो समाज की तंग सोच की परवाह किये बिना आगे निकल जातीं हैं, ऐसी ही एक महिला का नाम है, शरण्य जो अपना दूध मिल्क बैंक में दान करके न जाने कितने नवजातों की जान बचाने का नेक काम कर रहीं हैं. शरण्या के इस नेक काम में उनके परिवार के लोग पूरा उनका सपोर्ट करते हैं यहाँ तक की उनकी बेटी खुद मिल्क बैंक तक उनके साथ जाती है. वह मां से कहती है कि आप जब तक चाहें दूध दान करना जारी रख सकती हैं. शरण्या के पति रेगुलर ब्लड डोनर हैं. कभी भी जरूरत पड़ने पर वह रक्त दान करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. दान करने की प्रेरणा शरण्या ने उनसे ही ली है. शरण्या इस बात की पूरी जानकारी रखती हैं, कि उनका दूध किसी बच्चे को दिया जा रहा है. वह उस शिशु की मां से भी मिलती हैं. वह बताती हैं कि जब पैरेंट्स उनसे पूछते हैं कि इसके लिए कितने पैसे दें तो इससे उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं. वह लोगों से कहती हैं, कि ‘मां का दूध अनमोल है, इसे किसी को बेचा नहीं जा सकता.’
चेन्नई की शरण्या ऐसी ही एक महिला हैं, जो शहर के कांची चाइल्ड ट्रस्ट अस्पताल के मिल्क बैंक में दूध दान कर रही हैं. शरण्या दूसरी बार मां बनी हैं और पिछले दो महीने से लगातार दूध दान कर रही हैं. इस नेक काम की शुरुआत के बारे में बताते हुए शरण्या कहती हैं, कि जब वो प्रेग्नेंट थीं तो उन्हें फेसबुक के जरिए पता चला कि मां का दूध न मिलने की वजह से कई बच्चों की मौत हो जाती है और फिर उन्हें मदर मिल्क बैंक के बारे में पता चला जहां पर अपना दूध दान किया जा सकता था. वह हर पांच दिन पर मिल्क बैंक जाती हैं और 150mlतक दूध दान करती हैं. मदर मिल्क बैंक में तीन तरह की महिलाएं दूध दान करती हैं. एक तो वे जिनका दूध ज्यादा बनता है, दूसरी वे जिनके बच्चे ICU में भर्ती होने की वजह से दूध नहीं पी सकते हैं और तीसरी वे जिनके बच्चों की मौत हो जाती है. कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिन्हें दूध तो बनता है लेकिन किसी वजह सेे वे अपने शिशुओं को दूध पिला नहीं पातीं.
महिलाओं का दूध पंप या इलेक्ट्रिक पंप के जरिए निकालकर मिल्क बैंक में इकट्ठा कर लिया जाता है. ये दूध 6 महीने तक स्टोर किया जा सकता है. दूध लेने से पहले महिला की एचआइवी और हेपटॉइटिस जैसे कुछ रोगों की जांच की जाती है. इकट्ठा किये गये दूध को पॉश्चरीकृत कर जमा किया जाता है.
शरण्या ने जब दूध दान करना शुरू किया, तो उन्होंने सोचा कि ये उन बच्चों के लिए होगा, जिनकी मां दूध पिलाने में सक्षम नहीं होती हैं, लेकिन जब वो अस्पताल के बच्चों वाले वॉर्ड में गईं तो दंग रह गईं. उन्होंने देखा कि वहां पर कई शिशु ऐसे भी थे जो समय से पहले पैदा हो गए थे. कुछ का साइज तो हथेली के बराबर था. यही वो मौका था जब शरण्या ने सोच लिया, कि वह किसी भी हालत में दूध दान करने आया करेंगी.