गोपालगंज में गन्ने की मिठास में आने लगी है कमी, किसानो का गन्ने की खेती से होने लगा है मोह भंग
कभी गन्नाचंल के नाम से मशहूर गोपालगंज जिले में गन्ने की मिठास में कमी आने लगी है. वही गन्ने की रिकॉर्ड उत्पादन करने वाले इस जिले के किसानो का गन्ने की खेती से मोह भंग होने लगा है. जिसकी वजह से अच्छी पैदावार के बावजूद जिले में रिकॉर्ड चीनी का उत्पादन नहीं हो पा रहा है. और इसके साथ ही किसानो की बदहाली जस के तस है. बदहाल किसान अब गन्ने की खेती छोड़कर परम्परागत धान और गेहू की फसल लगाने का मन बनाने लगे है. एक रिपोर्ट है.
गोपालगंज सदर प्रखंड के जादोपुर शुक्ल गाँव के निवासी गन्ना किसान रामाशंकर भगत का कहना है की इस गाँव में कभी गन्ने का रिकॉर्ड पैदावार होता था. यहाँ की गन्ने की फसल जिले के सभी चीनी मिलो की पहली पसंद होती थी. लेकिन समय के साथ जिले में सिर्फ चीनी मिलो की संख्या ही कम नहीं हुई. बल्कि गन्ना उत्पादन करने वाले किसानो की संख्या में भी कमी आई है.
सदर प्रखंड के जादोपुर शुक्ल के 60 वर्षीय किसान रामाशंकर भगत के मुताबिक वे पहले कई बीघे में गन्ने की फसल का खेती करते थे. लागत बढ़ने और पैदावार कम होने की वजह से अब वे मात्र डेढ़ बीघे में ही गन्ने की खेती कर रहे है. रामाशंकर भगत ने बताया की उनका पिछले साल का गन्ने का अबतक चीनी मिलो से भुगतान नहीं मिला है. जिसकी वजह से गन्ने की खेती अब उनके लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है. खाद और बीज खरीदने के लिए उधार पैसे से काम चलाना पड़ता है. जिसकी वजह से वे आर्थिक तंगी से जूझ रहे है.
रामाशंकर भगत गोपालगंज के कोई अकेले किसान नहीं है. जिनका अब गन्ने की खेती से मोहभंग हो रहा है. बल्कि इसी गाँव के किसान रामावतार ने बताया वे पहले चार से पांच एकड़ में गन्ने की खेती करते थे. लेकिन अब वे पिछले तीन साल से महज दो बीघे में ही गन्ने का खेती कर पा रहे है. रिकॉर्ड उत्पादन होने के बावजूद उन्हें इसकी सही कीमत नहीं मिल पा रही थी. लागत ज्यादा है. साल में सिर्फ एक बार ही गन्ने की खेती होती है. जिसकी वजह से उन्हें उनकी मेहनत और लागत के हिसाब से मुनाफा नहीं हो पा रहा है. चीनी मिलो में उनका अभी तक बकाया है. उन्होंने जनवरी माह में ही गन्ने को चीनी मिल को दे दिया था. लेकिन भुगतान बाधित है.
वही इसी गाँव के दुसरे युवा किसान इम्तेयाज अंसारी ने बताया की उनके गाँव में गन्ने की बंपर पैदावार होती थी. जिले में चार चीनी मिले थे. हर तरफ खुशहाली थी. लेकिन अब जिले में सिर्फ तीन ही चीनी मिल बचा हुआ है. यहाँ खेती का दायरा भी सिमट रहा है. खाद, बिजली, बीज सब कुछ महंगा हो गया है. जिसके अनुसार फसल की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. जिसकी वजह से लोग अब गन्ने की खेती में कम ही रूचि ले रहे है.
बता दे की पहले जिले में करीब एक लाख हेक्टेयर में गन्ने की फसल होती थी. जो अब घटकर करीब 80 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती है.