दहेज उत्पीड़न का केस आते ही पति-ससुराल वालों की गिरफ्तारी नहीं – सुप्रीम कोर्ट
दहेज प्रताड़ना निरोधक कानून की धारा 498 ए के हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को व्यापक दिशानिर्देश जारी किए. अब दहेज प्रताड़ना के मामले पुलिस के पास न जाकर एक मोहल्ला कमेटी (सिविल सोसायटी) के पास जाएंगे, जो उस पर अपनी रिपोर्ट देगी. कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही पुलिस देखेगी कि कार्यवाही की जाए या नहीं.
शीर्ष अदालत द्वारा जारी इन निर्देशों के लागू होने के छह माह बाद 31 मार्च 2018 को विधिक सेवा प्राधिकरण परिवर्तन करने के लिए सुझाएगा. मामले की सुनवाई अप्रैल 2018 में होगी. अदालत के आदेश की प्रति राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, सभी डीजीपी, सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को कार्यवाही के लिए भेज दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष पूर्व एक फैसले में आदेश दिया था कि दहेज प्रताड़ना के मामले में पुलिस आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार नहीं करेगी.
जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने उत्तरप्रदेश के एक मामले में दिए फैसले में कहा कि धारा 498ए को कानून में रखने का (1983 संशोधन) मकसद पत्नी को पति या उसके परिजनों के हाथों होने वाले अत्याचार से बचाना था. वह भी तब जब ऐसी प्रताड़ना के कारण पत्नी के आत्महत्या करने की आशंका हो.
अदालत ने कहा कि यह चिंता की बात है कि विवाहिताओं द्वारा धारा 498ए के तहत बड़ी संख्या में मामले दर्ज कराए जा रहे हैं. स्थिति को हल करने के लिए हमारा मत है कि इस मामले में सिविल सोसाइटी को शामिल किया जाए, ताकि न्याय के लिए प्रशासन को कुछ मदद मिल सके. यह भी देखना होगा कि जहां वास्तव में समझौता हो गया है, वहां उचित कदम उठाया जाए. इससे पक्षों को इसे समाप्त करने के लिए हाईकोर्ट न जाना पड़े.
ये है मामला
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के इस मामले में पत्नी पक्ष ने धारा 498ए के तहत एफआईआर में पति राजेश शर्मा के सभी परिजनों भाई-बहन, माता-पिता का नाम लिखवा दिया था. आरोप था कि उन्होंने तीन लाख रुपये और कार की मांग पर उसे प्रताड़ित किया. मामले में जारी समन को रद्द करने के लिए वे सुप्रीम कोर्ट आए थे. कोर्ट ने इस मामले में एएसजी एएस नाडकर्णी और वी. गिरी को लेकर कमेटी बनाई थी, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर ये निर्देश जारी किए गए.
ये दिशा-निर्देश लागू होंगे
सुप्रीम कोर्ट ने कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने के निर्देश दिए हैं. इसके तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हर जिले में एक परिवार कल्याण कमेटी गठित करेगी, जिसमें तीन सदस्य होंगे. इस कमेटी के कार्य की जिला एवं सत्र न्यायाधीश समय-समय पर और कम से कम एक वर्ष में समीक्षा करेंगे. जबकि कमेटी में अर्द्धविधिक स्वयंसेवी/ सामाजिक कार्यकर्ता/ पूर्व कर्मी/ कार्यरत कर्मियों या अन्य नागरिकों की पत्नियां भी सदस्य होंगी. कमेटी के सदस्यों को गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा.
धारा 498ए के तहत आई प्रत्येक शिकायत पुलिस या मजिस्ट्रेट इस कमेटी के पास भेजेंगे. कमेटी परिवार के सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से, फोन, मेल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों से बातचीत करेगी. इसके बाद कमेटी अपनी रिपोर्ट एक माह में मजिस्ट्रेट या पुलिस को भेजेगी, जिसमें उसकी तथ्यात्मक राय होगी. कमेटी की रिपोर्ट प्राप्त होने तक पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं करेगी. साथ ही रिपोर्ट पर पुलिस जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट उसके गुणदोष को लेकर विचार करेंगे. कमेटी के सदस्यों को विधिक सेवा प्राधिकरण समय-समय पर बुनियादी प्रशिक्षण देगा और उन्हें उचित मेहनताना भी दिया जाएगा. उनके मेहनताने के लिए जिला एवं सत्र जज जुर्माना राशि से फंड ले सकते हैं.
धारा 498ए के तहत मिली शिकायत पर क्षेत्र के निर्दिष्ट अधिकारी जांच करेंगे. ऐसे अधिकारी को पुलिस एक माह के अंदर नियुक्त करेगी और उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा. समझौता हो चुके मामलों में जिला एवं सत्र जज कार्यवाही समाप्त करेंगे. देश से बाहर रह रहे आरोपियों के पासपार्ट जब्त या रेड कॉर्नर नोटिस रूटीन में जारी नहीं किए जाएंगे. मामले से जुड़े सभी केस एक ही अदालत में रखे जाएंगे, ताकि जज को इसकी पूरी जानकारी रहे.
मारपीट या मौत में यह सहूलियत नहीं – सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि उसके ये निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे, जहां पीड़ित के शरीर पर चोटों के निशान मिले हों या उसकी मृत्यु हो गई हो.