बिहार रेजिमेंट से थर-थर कांपता है पाकिस्तान, एक और मौका दीजिए सरकार
वीरों की भूमि है बिहार। भारतीय सेना में बिहार के जांबाज सैनिकों ने अपनी अमिट पहचान बनायी है। बिहार रेजिमेंट ने कई बार दुश्मनों के दांत खट्टे किये हैं। 1971 में पाकिस्तान को हराने में बिहार रेजिमेंट ने सबसे बड़ी भूमिका निभायी थी।
देश के लिए लड़ते लड़ते इस रेजिमेंट के कई जांबाजों ने अपनी जान भी न्योछावर की है। सितम्बर 2016 में जब आतंकियों ने जम्मू कश्मीर के उरी में सेना के कैंप पर हमला किया था उसमें 15 जवान बिहार रेजिमेंट के ही थे। 15 शहीदों में तीन बिहार के निवासी थे।
उरी आतंकी हमले में आरा के हवलदार अशोक कुमार, गया के एस के विद्यार्थी और कैमूर के सिपाही राकेश सिंह शहीद हुए थे। उरी हमले का बदला लेने के लिए ही भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी। एक बार फिर पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की मांग उठने लगी है। बिहार रेजिमेंट एक बार पहले भी पाकिस्तान को सबक सीखा चुकी है।
पाकिस्तान पहले दो हिस्सों में बंटा था। पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश)। 1970 के चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग ने संसद में बहुमत प्राप्त किया था। पाकिस्तान के सैनिक शासक यहिया खां ने शेख मुजीब को प्रधानमंत्री बनाने की बजाय जेल में डाल दिया। इसके खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में आजादी की लड़ाई शुरू हो गयी। इसे मुक्ति संग्राम का नाम दिया गया था। यहिया खां के सैनिक पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषियों पर भयंकर जुल्म ढाने लगे। भारत को भी इस युद्ध में शामिल होना पड़ा।
बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन को पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) कूच करने का आदेश मिला। बिहार रेजिमेंट की बटालियन ने भूटान की सीमा के निकट दरंगा में डेरा डाल दिया। वहीं से दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने लगे। कुछ दिनों के बाद बटालियन की चार कंपनियां पूर्वी पाकिस्तान में दाखिल हो गयीं। एक टुकड़ी ने हलुआघाट और दूसरी टुकड़ी ने सर्चापुर पर हमला बोल दिया।
बिहार रेजिमेट के बहादुर सैनिकों ने दोनों मोर्चे जीत लिये। यहां यहिया खां के सैनिकों के साथ बिहार रेजिमेंट के जवानों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। बिहारी सैनिकों ने पाकिस्तान के 27 सैनिकों के मार गिराया। 30 से अधिक घायल हुए। तीन बिहारी सैनिक भी शहीद हुए। इसके आगे ब्रह्मपुत्र नदी थी।
भारतीय सैनिक बड़ी दिलेरी से नदी पार कर मैमनसिंह तक पहुंच गये। मैमन सिंह पूर्वी पाकिस्तान का प्रमुख शहर था। 11 दिसम्बर 1971 को बिहार रेजिमेंट ने मैमन सिंह पर कब्जा कर लिया।
14 दिसम्बर 1971 को बिहारी सैनिक ढाका के नजदीक पहुंच गये। फिर रणनीति बना कर बिहार रेजिमेंट के ले. कर्नल लौलर, मेजर जनरल नागरा और ब्रिगेडियर संत सिंह ने ढाका को घेर लिया था। 16 दिसंबर को पाक फौज के जनरल जमशेद ने आत्मसमर्पण कर दिया।
इस लड़ाई में बिहार रेजिमेंट के 13 सैनिक शहीद हुए थे। बाद में पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के साथ जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।