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विदेश मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में सरबजीत को बताया तस्‍कर

सीमा रेखा पार करने के जुर्म में पाकिस्तान की जेल में लंबे समय से बंद रहे सरबजीत की बाद में जेल में ही हुए हमले में हत्या हो गई तो देश शोक में डूब गया। उनकी बहन दलबीर कौर लंबे समय से भारत सरकार के जरिए पाकिस्तान से भाई को छुड़ाने की लड़ाई लड़ रहीं थीं। मगर भाई की हत्या से बहन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। सरबजीत को शहीद की तरह पेश किया गया। हाल में रणदीप हुड्डा और ऐश्वर्या राय अभिनीत फिल्म  सरबजीत भी बनी। इस बीच एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि विदेश मंत्रालय सरबजीत को तस्कर मानता है। यह खुलासा एक RTI से हुआ है।

RTI के जवाब में विदेश मंत्रालय ने कहा है कि सरबजीत ने भारतीय वाणिज्‍य दूतावास से कहा था कि वह छोटा सा तस्‍कर था और कहा था  कि वह आजीविका के लिए छोटी-मोटी तस्‍करी करता था। एक बार ऐसी ही यात्रा के दौरान उसे 29-30 अगस्‍त 1990 की रात को कसूर सीमा के पास पाकिस्‍तानी सैनिकों ने पकड़ लिया था।”

सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर ने कहा कि पाकिस्तान ने पहले बेकसूर सरबजीत को मंजीत बताकर बम धमाकों का आरोपी करार दिया और साजिश के तहत उसका कत्ल भी करवाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान से इसका हिसाब मांगना चाहिए। सरबजीत ने देश के लिए कुर्बानी दी है। उसे तस्कर बताया जाना दुखद है।

विदेश मंत्रालय भले ही सरबजीत को तस्कर बता रहा हो, लेकिन भिखीविंड थाने के प्रभारी सुखराज सिंह के अनुसार सरबजीत के खिलाफ जिले के किसी भी थाने में तस्करी या अन्य कोई भी मामला दर्ज नहीं है।

इस मामले में आरटीआई दायर करने वाले भठिंडा के कारोबारी हरमिलाप ग्रेवाल ने कहा कि ”मुझे सरबजीत के परिवार को आर्थिक मदद देने से कोई दिक्‍कत नहीं है। लेकिन जब सरबजीत ने खुद का परिचय तस्‍कर के रूप में कराया तो फिर उस समय की राज्‍य और केंद्र की सरकारों ने उन्‍हें शहीद घोषित क्‍यों किया। क्‍या हम सरबजीत सिंह को भगत सिंह और करतार सिंह सराभा की तरह याद कर सकते हैं? जब सरबजीत का शव लाया गया था उस समय चुनाव थे और हो सकता है इसी वजह से उसे शहीद घोषित किया गया हो।”

सरबजीत पंजाब के तरनतारन जिले के भिखीविंड गांव निवासी रहे। जो वर्ष 1990 में गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गया था। वहां उन्हें पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया था। बाद में पाकिस्तानी सेना ने सरबजीत को भारत की खुफिया एजेंसी रॉ का एजेंट बताते हुए उन्हें लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी बनाया गया। कुछ ही महीने बाद वहां की अदालत ने उसे अक्टूबर, 1991 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई दी। भारत की तरफ से सरबजीत की रिहाई की काफी कोशिशें हुई मगर उसकी रिहाई नही हो सकी.  लाहौर की कोट लखपत जेल में उसे कुछ साथी कैदियों ने मार मीट की और उसे घायलावस्था में जिन्ना अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 2 मई, 2013 को उनका निधन हो गया।

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