गोपालगंज

गोपालगंज: कोरोना काल में माह-ए-रमजान का बदला स्वरूप, घरों में ही अदा की जा रही है नमाज

गोपालगंज: कोरोना के इस संकट काल के दौरान माह-ए-रमजान का स्वरूप बदल गया है। इस बीच घरों में ही पांच वक्त की नमाज अदा की जा रही है। घरों में भी रोजेदार शारीरिक दूरी का भरपुर ख्याल रख रहे हैं। यह सब प्रशासनिक स्तर पर कई दौर की बैठक आयोजित करने तथा मस्जिदों के इमामों की घर में ही इबादत करने की अपील के कारण है। रमजान माह के दूसरे दिन रविवार को भी इस अपील का असर दिखा। रमजान माह में लोगों ने मस्जिदों की जगह घर में ही इबादत किया।

शहर के जामा मस्जिद के इमाम सइदुल्लाह कादरी ने बताया कि माह-ए-रमजान अल्लाह की रहमत और इनायतों का महीना है। इस माह में रोजा रखने वालों की अहमियत काफी बढ़ जाती है। इस माह का बुनियादी अमल रोजा है जो हर मुसलमान पर फर्ज है। चाहे वो गरीब हो या मालदार। उन्होंने कहा कि रमजान के दिनों में इंसान रब की बंदगी खातिर उन चीजों को छोड़ देता है, जो उसके लिए रमजान के अलावा महीनों में हलाल और जायज है। लेकिन बड़ी अफसोस की बात है कि कुछ लोग वो काम बदस्तूर करते रहते हैं। जो आम हालात में भी उसके लिए नाजायज और हराम है। जैसे झूठ बोलना, पीठ पीछे किसी की बुराई करना, रिश्वत वगैरह है, जो हर हाल में हराम है। यदि वह न छोड़े तो भला ऐसा रोजा इंसान की रोहानी तरक्की में और मददगार कैसे हो सकता है। वे बताते है कि अल्लाह की रजा और खुशमदीह के लिए जब कोई भूख-प्यास के लिए तकलीफ रहता है, तो उसे अपने गरीब भाइयों की भूख सहने की तलखियों का एहसास होता है। कमजोर की बेबसी और मोहताज की गम के कसक उसके सीने में महफूज होती है। जब इंसान खुद उस राह से गुजरता है तो लोगों की मशक्कत और तकलीफ उसके लिए जाति तजुर्बा बन जाता है। अब वो इंसान के अंदर गरीबी की गरीबी और मोहताज के मोहताजगी उसके अंदर असर कर जाती है, तो वे पनाह अल्लाह की इबादत की ख्वाहिश पैदा कर जाती है। वे बताते हैं कि इस माह में कोई बंदा अल्लाह तआला से अपनी हाजत और जरूरत पूरी करने की मांग करता है तो उसकी मांग पूरी की जाती है।

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