गोपालगंज निवासी अनिल चौबे के आंखें नहीं पर हाथों में हुनर है कमाल का
‘कैसे आकाश में सुराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’
दुष्यंत की उपरोक्त पंक्ति को नेत्रहीन अनिल चौबे के उपर पूरी तरह चरितार्थ होती है. सच ही कहा गया है सच्ची लगन और निष्ठा से अगर असंभव से असंभव काम भी ठान लिया जाए तो उसमें शारीरिक अपंगता आड़े नहीं आ सकती है.
ऐसा ही देखने को मिल रहा है बैकुंठपुर प्रखण्ड के रेवतिथ गांव में. जहां नेत्रहीन होने के बावजूद भी अनिल चौबे अपने हुनर के बल पर पूरे गांव और समाज को राह दिखा रहे हैं. दिव्यांग अनिल चौबे अकेले अपने बूते गौपालन का कारोबार कर अपने बच्चो को शिक्षा ग्रहण करा रहे है तथा समाज के लिये प्रेरणाश्रोत बने है. बैंक से कर्ज के कर इन्होंने गौ पालन का कम शुरू किया. दोनों आँख से अंधा होने के बावजूद गाय, भैस ,बछरे को खोलना, बांधना, चारा डालना, गोबर फेकना, दूध दुहना, पानी डालना, चारा काटना, निकौनी करना आदि कामो को वे बखूबी कर लेते है. उनके द्वारा उदपादित दूध की खपत आसानी से हो जाती है. सुधा मिल्क डेयरी दूध ले जाती है और मवेशियों के गोबर जरुरत मंद किसान ले जाते है. उन्हें उनके कार्यो के लिय रेवतिथ गॉव का लौहपुरुष माना जाता है |