14.50 लाख करोड़ के 500 व 1000 के नोट बाजार में थे, अब तक 11 लाख करोड़ बैकों में आए वापस
नोटबंदी की घोषणा के दिन 14.50 लाख करोड़ मूल्य के 500 व 1000 के नोट बाजार में थे. अब तक 11 लाख करोड़ के नोट बैकों में वापस जमा हो चुके हैं जबकि अभी नोट जमा करने की सीमा 31 दिसंबर तक है.
आठ नवंबर की शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए एक आंकड़ा दिया था. आकड़ा यह था कि भारती की मौजूद नगदी वाली अर्थव्यवस्था में करीब 86% मुद्रा 500 और 1000 कीमत वाले नोटों की है. प्रधानमंत्री की घोषणा के तुरंत बाद बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने बताया था कि देश में जितनी मुद्रा प्रचलन में है उसमें 500 व 1000 रुपये के नोटों की कीमत लगभग 14.50 लाख करोड़ रुपये है जो कि कुल नगद मुद्रा का 86% होती है.
11 लाख करोड़ रुपये हुए जमा
सरकार का शुरुआती आकलन था कि मौजूदा अर्थव्यवस्था में 3 से 4.8 लाख करोड़ के करीब कालाधन सामने आएगा. अलग-अलग एजेंसियों और सरकारी स्रोतों से समय समय पर आने वाले आंकड़े बताते हैं कि भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था में दौड़ रहे काले धन का प्रतिशत 15 से 30 फीसदी के आसपास हो सकता है.
अर्थव्यवस्था में कितना काला धन?
पहले से ही विपक्ष ने संसद की कार्रवाई को ठप कर रखा है. संसद का शीतकालीन सत्र लगभग आधा बीत चुका है. ऐसे में इस तरह का कोई मुद्दा न सिर्फ विपक्ष के हाथ बड़ा हथियार मुहैया करवाएगा बल्कि सरकार के सामने आगामी चुनावों की राह भी दुर्गम बनाएगा.
इस तरह की स्थिति में सरकार की तमाम वित्तीय सुधार की योजनाएं ध्वस्त हो सकती हैं. नोटबंदी के सरकार के फैसले के प्रबल समर्थक व वित्त मंत्रालय के सलाहकार एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘अगर अर्थव्यवस्था में दौड़ रही पूरी राशि बैंकों में आ जाती है तो यह चौंकाने वाली बात होगी. इसका सिर्फ यही मतलब होगा कि सरकार की इतनी बड़े पैमाने पर की गई कवायद बेमतलब सिद्ध हुई और काले धन का इस्तेमाल करने वाले बेहद शातिर सिद्ध हुए हैं.’
सरकार के ऊपर एक आरोप यह भी लग सकता है कि उसके विभागों और निगरानी एजेंसियों के पास नोट मुद्रण का सही आंकड़ा मौजूद ही नही है. एक तर्क यह हो सकता है कि बहुत बड़ी मात्रा में अर्थव्यवस्था में नकली करेंसी दौड़ रही थी जो कि अब बैंकों के माध्यम से सरकार के पास पहुंच चुकी है. ऐसे में भी सरकार और बैंकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठंगे कि उनके पास असली और नकली नोट की पहचान करने का कोई तंत्र मौजूद ही नहीं है. नकली नोट वालों ने बड़ी आसानी से अपना पैसा असली बना लिया.
अगर ऐसा हुआ है तो फिर इस बात की क्या गारंटी है कि नए नोट की नकल नहीं होगी. और एक बार अगर यह भेद खुल गया कि बैंकों के पास असली-नकली का भेद करने का कोई पुख्ता तरीका नहीं है तो फिर यह नकली नोट के धंधेबाजों के लिए बहुत अनुकूल स्थिति होगी.
ऐसे में सरकार को राजनीतिक और ब्यूरोक्रेसी के स्तर पर इससे निपटने के कदम युद्धस्तर पर उठाने होंगे.
काले धन के आकार का अनुमान
1983: चेलैया समिति ने 22 हजार करोड़ बताए
2009: लालकृष्ण आडवाणी ने 25 लाख करोड़ रुपये का किया आकलन
2010 : ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी ने बताया 1947-2008 के बीच 462 अरब डॉलर की राशि बाहर भेजी गई