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पत्नी की घर में पड़ी थी लाश, लेकिन बैंक की लाइन में खड़ा रहा बुजुर्ग पति

नोटबंदी के बाद देश में कैश की किल्लत इस कदर है कि चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। लोग घंटों एटीएम के बाहर लाइन लगाकर खड़े हैं फिर भी उन्हें कैश के लिए निराशा हाथ लग रही है। लेकिन इन सबके बीच हरियाणा के पानीपत से एक ऐसी दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है जो मानवता को झकझोर रख दिया है। यहां एक बुजुर्ग की 74 वर्षीय पत्नी की मौत हो गयी लेकिन उसके पास इतना कैश नहीं था कि वो अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार कर पाता। ये बुजुर्ग 5 घंटे बैंक की लाइन में खड़ा रहा लेकिन जब धैर्य ने साथ छोड़ दिया तो वहीं फूट-फूट कर रोने लगा।

पीएम मोदी द्वारा 8 नवंबर से नोटबंदी के बाद नकदी संकट के कारण लोग परेशान हैं, लेकिन यहां एक व्यक्ति को जिन स्थितियों का सामना करना पड़ा वह दिल को झकझोर देता है। उस व्यक्ति की पत्नी की मौत हो गई और उसके पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे। इस हालात में उसकी किसी ने मदद नहीं की और वह अपने बैंक खाते में जमा पैसे निकालने बैंक की कतार में लग गया 10 बजे से तीन बजे तक वह लाइन में लगा रहा, लेकिन उसे पैसे नहीं मिल पाए। काफी जद्दोजहद के बाद पार्षद और मीडिया के सहयोग से उसे शाम 4 बजे पैसे मिल पाए।

इस बुजुर्ग के आंखो से टपके आंसुओं वो दर्द बयां कर रहे थे जो कि शायद ही किसी और इन्सान ने महसूस किए हों। पत्नी के मौत के दर्द झेल रहे इस बुजुर्ग का दिल तब और सहम गया जब उसके तीन बेटों में से किसी ने मां के अंतिम संस्कार के लिए कोई मदद नहीं की। तीनों बेटे नौकरी कर रहे हैं।

बता दें कि मूल रूप से बिहार के गया जिले के गांव आदमपुर निवासी राजेंद्र पांडे 2001 में पानीपत आया था और कई साल यहां डाई हाउस में काम किया।  बृहस्पतिवार सुबह 10 बजे राजेंद्र पांडे की 72 वर्षीय पत्नी चंद्रकला की कैंसर से मौत हो गई। पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। ऐसे में वह पत्नी का शव घर में छोड़कर बैंक में जमा लगभग पांच हजार रुपये निकलवाने गया, लेकिन तीन बजे तक लाइन में लगने के बाद भी पैसे नहीं मिल पाए।

राजेंद्र पांडे का बैंक ऑफ बड़ौदा में खाता है और उसमें 5301 रुपये थे। पैसे निकलवाने के लिए वह बैंक के बाहर सुबह 10 बजे से कतार में लगा रहा, लेकिन तीन बजे तक वह पैसे नहीं निकाल सका। उसने बैंक के अधिकारियों से बात की, लेकिन उनको राजेंद्र पर तरस नहीं आया। इसके बाद उसने इलाका पार्षद सुशील शर्मा से बैंक प्रबंधक के नाम पत्र भी लिखवाया, लेकिन बैंक में कोई सुनवाई नहीं हुई। इस दौरान बैंक के बाहर मौजूद मीडिया कर्मियों ने बुजुर्ग को रोते देख बैंक अधिकारियों से बात कर उसे 4000 रुपये दिलवाए। उसके बाद शाम को बुजुर्ग ने अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार किया।

इस नोटबंदी की मार झेल रहे राजेंद्र पांडे पहले शख्स नहीं है इससे पहले भी बहुत लोगों को अपनी परिजनों के अतिंम संस्कार करने के लिए घटों बैंको के बाहर पैसों के लिए खड़ा रहना पड़ा है। हालांकि सरकार ने शमशान घाट, अस्पताल, जैसी अन्य संस्थानों में पुराने नोट चलाने के लिए छूट दे रखी है।

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