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विजयादशमी को यहां शोक, मनाते हैं रावण का मातम

विजयादशमी पर पूरे देश में बुराई पर अच्छाई का प्रतीक रावण दहन किया जाता है। लोग श्रीराम की जीत पर जश्न मनाते हैं लेकिन, जोधपुर की कुछ गलियां ऐसी भी हैं जहां रावण दहन नहीं किया जाता है बल्कि, विजयादशमी को शोक मनाया जाता है। खूबसूरत शहर जोधपुर की इन गलियों में रावण का दहन नहीं किया जाता है। यहां के श्रीमाली ब्राह्मणों के कुछ परिवार रावण को राक्षस नहीं बल्कि, अपना पूर्वज मानते हैं।

शहर के पहाड़ी क्षेत्र में बने रावण मंदिर के पंडित बताते हैं कि रावण का कुल गोधा था और यहां के श्रीमाली ब्राह्मण के गोधा कुल के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं। जब पूरा देश अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में रावण के पुतले का दहन करता है, तब यहां मातम का माहौल होता है। ये लोग न रामलीला आयोजित करते हैं और न कभी रावण का दहन करते हैं। बल्कि दशहरा पर यहां शोक मनाया जाता है। विचारक रतन सांखी का कहना है कि राम सत्य है और सत्य रावण भी है। रावण चरित्र से सत्य था लेकिन, लक्ष्मन द्वारा किया गया कृत्य रावण के लिए असहनीय था। क्योंकि हर बहन अपने भाई से रक्षा का वचन लेती है और लक्ष्मण ने रावण की बहन का अपमान किया था। फिर रावण को बहन का बदला तो लेना ही था इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि रावण अधर्मी था, विधि के विधान में रावण को राम के हाथों मरना भी लिखा था और वही हुआ।

रावण दहन के बाद लोग शोक मग्न अवस्था में स्नान करते हैं। यहां रावण की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ-हवन किए जाते हैं। स्त्रियां रावण को महापंडित और सत्य पुरुष मानती हैं। यहां रावण को आचार्य के रूप में पूजने की परम्परा है। यहां रावण मंदिर में रावण की पूजा और आराधना होती है।

यहां रावण की आराध्य देवी खरानना देवी का मंदिर है। यहां देवी को धोक लगाई जाती है। श्रीमाली ब्राह्मण के गोधा कुल के लोगों द्वारा यहां रावण का तर्पण भी किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में रावण का श्राद्ध भी किया जाता है।

 

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