गोपालगंज: एक बीघा क्षेत्र में फैला 150 साल पुराना एक वटवृक्ष, लोगो के बीच बना चर्चा का विषय
गोपालगंज में 150 साल पुराना एक ऐसा वटवृक्ष है। जो इनदिनों लोगो के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इस वट वृक्ष की करीब 200 शाखाएं है। जो करीब एक बीघा क्षेत्र में फैली हुई हैं। यह पेड़ गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर बैकुंठपुर प्रखंड के राजापट्टी कोठी स्थित सोनासती देवी मंदिर के पास है। बताया जाता है कि इसे अंग्रेजों ने संरक्षित किया था।
कालांतर में अंग्रेज यहां नील की खेती किया करते थे। उस दौरान यहाँ काम कर रहे मजदूरो को छाया और गर्मी के दिनों में ठंढक के लिए इस पेड़ को लगाया गया था। इस पेड़ की खासियत यह है कि इसके पेड़ के बीच में और नीचे तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है। गर्मी के दिनों में चलने वाली लू और गर्म हवाएं इसकी छाया में पहुंच कर ठंडी हो जाती हैं।
इस पेड़ की शाखाएं एक-दूसरे से गूंथकर जमीन में अपनी मोटी जड़ें जमा चुकी हैं। जड़ो के लिहाज से यहाँ सिर्फ एक पेड़ की वजह से जंगल जैसा नजारा दीखता है। इस वट वृक्ष की मोटी जड़े 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड सोखती हैं। ऐसा जानकर मानते है। ये शाखाएं
अपने आप में कार्बन सोखने के लिए फ़िल्टर का काम करती है।
वनस्पति विज्ञानं के प्रोफ़ेसर डॉ सरफराज अहमद के मुताबिक ऐसे पेड़ को अक्षय वट कहते हैं। इसका बॉटेनिकल नाम- फिक्स रीलिजोसा है। इसकी फेमली- मोरसिया है। इसकी शाखाएं 50 से 60 किलो ग्राम कार्बन-डाईऑक्साइड सोखतीं है। अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है। ऐसे पुराने पेड़ जितना ज्यादा घने और ज्यादा शाखाये होती है। वे नमी और ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करती है। यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 30 से 35 डिग्री रहता है।
बताया जाता है कि महिला अंग्रेज हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था। इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था। जो अब दूर दूर तक नहीं दिखाई देता। लेकिन यह विशाल वट वृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है। ब्रिटिश हुकूमत में यहां नील की खेती होती थी। कोठी में अंग्रेज अधिकारी के साथ उनकी पत्नी हेलेन भी रहती थी। आसपास की महिलाएं यहां सोनासती मइया की पूजा करने आती थी। तब हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था, ताकि पूजा-पाठ हो और मजदूरों को छाया मिल सके।