गोपालगंज

गोपालगंज में जन्म से अंधे हैं दो मासूम बच्चे लेकिन अब तक नहीं मिला सरकारी प्रमाण पत्र

गोपालगंज में अपने मासूम नातिन और नतिनी को लेकर बूढी नानी जहा दरदर की ठोकरे खाने को मजबूर है. वही सदर अस्पताल में महज दिव्यान्गता प्रमाण पत्र बनवाने के लिए यह बुजुर्ग महिला पिछले दो साल से चक्कर काट रही है. बुजुर्ग महिला जन्म से अंधे अपने नातिन और नतिनी का हैंडीकैप सर्टिफिकेट बनवाना चाहती है. लेकिन सरकारी सिस्टम के आगे वह लाचार है.

सरकार के हाकिम , जरा गौर से देखिये. यह बुजुर्ग महिला अंधे दो मासूम दिव्यांग अपनी नातिन और नतिनी को लेकर सदर अस्पताल में भटक रही है. इस बुजुर्ग महिला का नाम हसबुन नेशा है. वह जादोपुर के पतहरा का रहने वाली है. इस बुजुर्ग महिला की बेटी और दामाद उचकागाव के चमारीपट्टी के रहने वाले है.

इस महिला की बेटी को चार बच्चे है. जिसमे 10 वर्षीय बेटी रजेया और 4 वर्षीय मासूम इमरान बचपन से ही अंधे है. इन मासूम बच्चो के आंख की रौशनी जन्म से ही गायब है. पीड़ित हसंबुन नेशा के बेटे तैयब अंसारी के मुताबिक वह अपनी माँ के साथ बहन के इन दोनों बच्चो को लेकर पिछले दो साल से दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाने के लिए सदर अस्पताल का चक्कर काट रहे है. इसके पहले वे फुलवरिया रेफरल अस्पताल में भी कई बार गए. वहा से उन्हें सदर अस्पताल में भेज दिया गया. यहाँ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए लगातार चक्कर काट रहे है. लेकिन अबतक उनके भांजा और भगिनी का सर्टिफिकेट नहीं बन सका.

वही 60 वर्षीय हसबुन नेशा बताती है की उनके नाती और नतिनी अंधा है. वे यहाँ लगातार आ रही है. लेकिन यहाँ कोई सुनने वाला नहीं है. वे अपनी इस मासूम बच्चो के साथ शहर में आती है. लगातार बच्चो के वाहनों से कुचलने का डर बना रहता है. बावजूद इसके उनकी कोई सुनने वाला नहीं है.

इस मामले में जब सिविल सर्जन से बात की गयी तो वे पटना में आयोजित बैठक में मौजूद होने की वजह से उपलब्ध नहीं हो सके. सीएस डॉ अशोक चौधरी के मुताबिक दिव्यान्गता सर्टिफिकेट के लिए महीने के प्रत्येक 21 तारीख को मेडिकल कैंप लगाकर जाँच की जाती है. हर कोई जिन्हें सर्टिफिकेट की आवश्यकता है. वे इस कैंप के जरिये आवेदन दे सकते है.

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