करगिल विजय दिवस : करगिल की दांस्ता वीर योध्दाओं की जुबानी
आज करगिल विजय दिवस के मौके पर जहां पूरा देश भारतीय सेना के जांबाज जवानों के लिए जश्न मना रहा है, वहीं आज देश के लोग अपने उन जवानों के हौसलों को सलाम कर रहे हैं, जो अपनी कुर्बानी देकर ऐसे मुश्किल हालातों में भी दुश्मनों को अपनी जमीन से खदेड़ने में कामयाब रहे। करगिल में हुई इस जबरदस्त लड़ाई की यादें आज के दिन भी इस करगिल जंग के हिस्सा रहे सैनिकों के जहन में ताजा है।
पाकिस्तान से के साथ सीधी लड़ाई
करगिल वॉर में लड़े ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) कुशल ठाकुर ने करगिल जंग की अपनी यादें साझा की है। ठीक 18 साल पहले 26 जुलाई को जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान की आखिरी टुकड़ी को वापस LOC की दूसरी तरफ खदेड़ा, उस वक्त कुशल 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट का हिस्सा थे। इस सेना की कश्मीर में आतंकवाद से लड़ने में भी योगदान रहा। करगिल के ड्रास सेक्टर इलाके में तैनात किये गये 18 ग्रेनिडयर्स जंग वाली जगह के सबसे करीब थे। यही वो सेक्टर है जहां तोलोलिंग की लड़ाई लड़ी गई थी। कुशल ठाकुर ने बताया, ‘जब हम ड्रास पहुंचे तो काफी मुश्किल हालात थे। हमारा पहला लक्ष्य तोलोलिंग पर वापस से कब्जा करना था। हमें जानकारी मिली थी कि ऊपर सिर्फ चार से पांच आतंकवादी छिपे हो सकते है।’ ठाकुर और उनकी टीम को काफी पेरशानियों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने बताया, ‘यह इंटेलिजेंस की नाकामी थी। हमने तोलोलिंग पर पाकिस्तान के नॉर्दर्न लाइट इन्फेन्ट्री के 120 जवानों की पूरी कंपनी देखी।’
हर तरफ से बरस रही थीं सिर्फ गोलियां
18 ग्रेनेडियर्स ने तोलोलिंग पर जीत के लिए तीन बार दुश्मनो पर हमला बोला था। हालांकि, उस हमारे जवान कब्जा करने में कामयाब नहीं रहे। चौथे हमले की अगुआई कुशल ठाकुर कर रहे थे। उस दौरान वह कर्नल थे। 2 जून 1999 का दिन, यूनिट के दूसरे सबसे सीनियर अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन ने भी मैदान में जाने का फैसला किया। हमला 2 और 3 जून के बीच रात को किया गया था। ठाकुर ने बताया, ‘हम अपने एक कंपनी कमांडर मेजर राजेश अधिकारी (महावीर चक्र से सम्मानित) का शव हासिल करने की कोशिश में थे। उस समय हम वहां तक पहुंच नहीं पा रहे थे। हर तरफ से बस दुश्मन की गोलियां ही बरस रही थी। मैंने इस गोलीबारी में अपने 9 जवान गंवा दिए। कुछ देर बाद मेरे लोगों ने बताया कि विश्वनाथन को भी गोली लगी है। मैं उस वक्त रेंग रहा था। मैंने हर तरफ से गोलियां चलती देखीं।’
ठाकुर ने आगे बताया, ‘मेरे ठीक दाईं तरफ एक जूनियर कमीशंड ऑफिसर को गोली लगी। मैंने अपने रेडियो ऑपरेटर को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की, लेकिन उसे भी गोली लगी। मैंने अपने लोगों से कहा कि वह विश्वनाथन को मेरे पास लेकर आएं। वह उसे जब मेरे पास लाए तो वह बुरी तरह से घायल थे। हम कुछ नहीं कर सकते थे। रात का वक्त था और बर्फ गिर रही थी। मैंने उनका सिर अपने हाथों में रखा और उसी वक्त वह गुजर गए।’ उस दौरान तोलोलिंग पर कब्जे से पहले विश्वनाथन जिन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया, के साथ 25 जवानों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी।
योगेंद्र यादव की प्रतिभा
ठाकुर ने आगे बताया कि भारतीय सेना का अगला बड़ा ऐक्शन टाइगर हिल पर था। इस पर 3 और 4 जुलाई को कब्जा किया गया। 18 ग्रेनेडियर्स ने इस जंग में अपने 9 जवानों की शहादत दी। सूबेदार योगेंद्र यादव की उम्र उस वक्त सिर्फ 19 साल थी। वह उस समय अपनी यूनिट के सात सबसे खतरनाक सैनिकों की टीम को लीड कर रहे थे। यादव ने बताया, ‘हम 30 से ज्यादा सैनिकों की कमांडो यूनिट का हिस्सा थे जिसे टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए भेजा गया था। पहाड़ी पर चढ़ाई के लिए ही हमें दो रात और एक दिन का वक्त लगा था। मैं पहली टुकड़ी का हिस्सा था। जैसे ही हम पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे तो हम दुश्मन की चौकियों के बीच फंस गए। पाकिस्तानी सैनिकों ने हम पर तीन बार हमला किया और जल्द ही हमारा गोला बारूद खत्म हो गया।
गोलियां खत्म तो संगीनों से भिड़े
यादव ने बताया, ‘आखिरी कोशिश के तहत हमने अपनी संगीनें हथियार निकाले और दुश्मन से सीधा सामने से भिड़ गए। मेरी टुकड़ी के छह जवान शहीद हो गए। मैं भी बुरी तरह घायल हुआ और मरते-मरते बचा।’ यादव इन मुश्किल हालातों में किसी तरह अपने कमांडिंग ऑफिसर ठाकुर तक पहुंचने में कामयाब हुए। वहां उन्होंने ठाकुर को हालातों की जानकारी दी। इसके बाद, दोबारा सेना की मदद भेजी गई और टाइगर हिल पर कब्जा हो गया। टाइगर हिल की यह लड़ाई कारगिल की जंग का टर्निंग पॉइंट माना जाता है। ठाकुर कहते है, ‘पाकिस्तान ने हमेशा भारत की पीठ में छुरा भोंका है। उस वक्त दोनों देश शांति के लिए बातचीत कर रहे थे। पाकिस्तान ने हमें सियाचिन और लद्दाख से हटाने के लिए साजिश रची। 150 से ज्यादा भारतीय जवान शहीद हुए। 1300 से ज्यादा लोग घायल हुए।’