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जो खुदा की निगाह में गुनाह, उसे इंसान के कानून में मान्यता कैसे मिली: सुप्रीम कोर्ट

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दूसरे दिन आज तमाम पक्षों ने इसे खत्म करने की पैरवी की. कोर्ट को बताया गया कि एक साथ तीन तलाक बोलना खुदा की निगाह में गुनाह है. कोर्ट ने पूछा- जो खुदा की निगाह में गुनाह, उसे इंसान के बनाए कानून में मान्यता कैसे दी गई?

वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद का पक्ष

आज बहस की शुरुआत वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने की. एमिकस क्यूरी के तौर पर पेश हुए खुर्शीद ने इस्लाम की अलग अलग विचारधाराओं की जानकारी दी. उन्होंने कहा भारत में 80 फीसदी सुन्नी मुसलमान हैं. ये हनफ़ी, मालिकी, सैफी, हंबाली और अल हदीस जैसी अलग विचारधाराओं से जुड़े हैं. इनमें सबसे बड़ा वर्ग है हनफ़ी विचारधारा वालों का. ये कुल सुन्नी मुसलमानों का 90 फीसदी हैं. हनफ़ी तलाक ए बिद्दत यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने को मान्यता देते हैं.

कोर्ट ने पूछा, “तीन तलाक धर्म का ज़रूरी हिस्सा है या परंपराओं से इसकी शुरुआत हुई है? भारत के बाहर इसकी क्या स्थिति है?” खुर्शीद ने बताया, “तलाक इस्लाम की शुरुआत से नहीं है. लगभग 1000 साल पहले ये शुरू हुआ. दुनिया के तमाम देश इसे खत्म कर चुके है. भारत में राजनीतिक वजहों से किसी ने इसे बदलने की कोशिश नहीं की.”

खुर्शीद ने बताया कि इस्लाम में महिला को भी तलाक का हक दिया गया है. इसे तलाक ए तफवीज़ कहा गया है. हालांकि, ये हक तभी मिलता है जब निकाह के वक़्त इसकी मंजूरी ले ली जाए. निकाह के वक्त मेहर के साथ तलाक ए तफवीज़ की भी शर्त रखी जानी चाहिए. ये भी कहा जाए- तलाक ए बिद्दत नहीं दिया जा सकेगा.

खुर्शीद के अलावा आज वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने भी दलीलें रखीं. उन्होंने कहा, “इस्लाम में ज्ञान को बहुत महत्व दिया गया है. 3 तलाक मूल इस्लाम के प्रति अज्ञान को दिखाता है. ये महिलाओं के बराबरी के अधिकार के खिलाफ है. इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का भी हनन होता है.” जेठमलानी के बाद वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन ने तलाक ए बिद्दत को महिलाओं के प्रति भेदभाव भरा बताते हुए खत्म करने की मांग की.

याचिकाकर्ता फरहा फैज़ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से बनाए गए दारुल क़ज़ा (शरई अदालतों) को बंद करने की मांग की. उन्होंने कहा-मुस्लिम कानूनों को कोडिफाई यानी सही तरीके से लिपिबद्ध करना ज़रूरी है. उनसे जुड़े सवाल कानूनी तरीके से बने कोर्ट में उठें, न कि दारुल क़ज़ा में जहाँ मौलवी अपनी मर्ज़ी से धर्म की व्याख्या करते है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान की ज़ोरदार दलील

मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने ज़ोरदार दलीलें रखीं. उन्होंने कुरान में दिए तलाक के मूल तरीके को बताया. उन्होंने बताया कि तलाक एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें पति-पत्नी के बीच सुलह की तमाम गुंजाईश दी गई है. एक झटके में 3 तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा नहीं है. बल्कि ये हर उस अच्छी बात के खिलाफ है जो कुरान में कही गई है.

आरिफ मोहम्मद खान ने बताया कि एक साथ तीन तलाक इस्लाम से पहले की कुप्रथा है. पैगंबर मोहम्मद ने इसे बंद करवाया. उनके बाद अलग-अलग लोगों ने अपने फायदे के हिसाब से इस्लाम की व्याख्या शुरू कर दी. ये प्रथा इतनी ही क्रूर है जितनी बच्चियों को ज़िंदा दफनाने की प्रथा. इस प्रथा को भी पैगंबर मोहम्मद ने बंद कराया था. जो क्रूर है, वो इस्लाम का हिस्सा हो ही नहीं सकता.

इन दिग्गजों के अलावा आज कई और वकीलों ने अपनी बात कोर्ट में रखी. कोर्ट ने उन्हें सुनने के बाद अलग-अलग विचारों से जुड़े इस्लामिक विद्वानों की तीन तलाक पर राय को देखने की इच्छा जताई. साथ ही कोर्ट ने दुनिया के तमाम देशों में 3 तलाक की क़ानूनी स्थिति की भी जानकारी मांगी है.

5 जजों की संविधान पीठ के सामने इस मसले की सुनवाई सोमवार को भी जारी रहेगी. उस दिन एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी केंद्र सरकार की तरफ से दलीलें रखेंगे.

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