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मेरे तीन चिरागों को बुझानेवाले शहाबुद्दीन को तो और भी कड़ी सजा होनी चाहिए थी

दो सगे भाइयों को तेज़ाब से जलाकर मार डालने के जुर्म में आज पूर्व राजद सांसद मो. शहाबुद्दीन को उम्र कैद की सजा हो गयी. हालांकि अब उन भाइयों के बूढ़े माता-पिता को डर लग रहा है.

शहाबुद्दीन को आज सजा सुनाये जाने के बाद से ही एक समय के बड़े व्यवसायी चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ़ चंदा बाबू के घर सभी मीडियाकर्मियों का आना-जाना शुरू हो गया. अलग-अलग पत्रकारों और न्यूज़ चैनलों के रिपोर्टरों के सवालों के उन्होंने जवाब दिए मगर सबका सार एक ही था, कि वो लोग अब अपनी जिन्दगी को लेकर डर रहे हैं.

एक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए चंदा बाबू ने कहा कि, ‘शहाबुद्दीन के लिए इससे बेहतर फांसी की सजी होती, फिर भी हम न्यायालय का सम्मान करते हैं.’ उन्होंने कहा कि अब हमलोगों को यह भय सता रहा है कि कहीं इसके बाद हमलोगों के साथ भी कुछ ना हो जाए.

उनके परिवार में अब एक विकलांग बेटे और पत्नी के अलावे कोई नहीं है. ज्ञात हो कि साल 2004 में एक भूमि विवाद में झगडे के बाद कथित तौर पर शहाबुद्दीन के ही इशारे पर उनके दो बेटों का अपहरण कर लिया गया था और बाद में उन्हें तेज़ाब से जलाकर मार डाला गया. उनके सबसे बड़े बेटे और इन हत्याओं के चश्मदीद गवाह की भी पिछले साल गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी.

चंदा बाबू ने आगे बताया कि अब शहाबुद्दीन के आतंक के कारण उन्होंने शहर छोड़ने का मन बना लिया है. वे कहते हैं, ‘मैं अपनी पत्नी और विकलांग बेटे के साथ रहता हूं लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं. सीवान में रहूं या फिर सीवान छोड़ के चला जाऊं. आशंका है कि हमलोगों का भी मर्डर हो जाए. किराए के पैसे से किसी तरह घर चल रहा है.’

सजा के खिलाफ आगे हाईकोर्ट में अपील के सवाल पर वो कहते हैं कि अब इससे आगे कोर्ट में अपील नहीं करेंगे क्यूंकि उस काबिल हम नहीं हैं. उनका आरोप है कि इस समस्या में सरकार से लेकर किसी व्यक्ति ने उनकी कोई मदद नहीं की.

उनकी पत्नी भी कैमरों के सामने ही फफक–फफक कर रो पड़ती हैं और कहती हैं कि, ‘अब तो परिवार में एक ही बच्चा बचा है. मेरे तीन चिरागों को तो शहाबुद्दीन ने बुझा दिया, उसे तो और भी कड़ी सजा होनी चाहिए थी.’

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